02 अप्रैल, 2021

मन अशांत

 


मन अशांत

 खोज रहा सुकून

चंद पलों का

 होने लगा ऐसा क्यूँ ?

है  अनजान  

कारणों की खोज से

क्या विकल्प

खोजा है अब तक

मन बेचैन

जब चाहे उचते

स्थिर न रहे  

बदले की भावना

सर उठाए

मन  से  नियंत्रण

उठता जाए

 यह कैसा सोच  है

दुविधा में है 

 रुकने  का नाम नहीं

जितना सोचो

तकरार बनी रहती

संतप्त  मन

अहम् और मन की

 हल खोजना

है  भी नहीं आसान 

जितना दिखाई दे

यही सच  है

कोई  होता विकल्प |

आशा 



01 अप्रैल, 2021

क्या रखा है

 


क्या रखा है 

स्वप्नों की

उस दुनिया में

जिसमें ज़रा भी

सच्चाई न हो

है मात्र यह

कल्पना

स्वर्ग सा

आकर्षण जहां

जीवन बेरंग 

है उदास

इन कल्पनाओं में भी

फिर क्या लाभ

खोखले बदरंग से

विचारों का

हर हाल में जो

 खुश न रहे

जीवन है 

व्यर्थ उसका |

आशा


31 मार्च, 2021

छाई खुशियाँ


                                                                        मेरी    खुशियां 

  जब भी  जन्म लेती

बहार आती 

जब  बहार आती  

खुशी सी छाती 

  रहती  वहीं खुशी 

 मस्ती रहती 

 खरीदी जातीं नहीं  

बहती  जाती 

नदी  की  लहरों सी

 देखे नखरे  

  बहती लहरों के 

रंग खेलते   

हरे भरे  वृक्षों से    

 खिलते फूल

रंगबिरंगी डाल  

दिखने लगी 

सब एक साथ ही   

जल की बूंदे   

 मन के सुकून को 

देती विश्राम    

होती है थिरकन 

मेरे पैरों में 

जब भी हवा चले 

मन  हो खुश 

बालक सी आदतें 

  होती  जीवन्त

 देती अनूठी खुशी  |

आशा 


30 मार्च, 2021

एक छत के नीचे

 

  


                                                                       वह और मैं   

क्यूँ  रह पाए साथ

 समझे नहीं   

 एक छत के नीचे  

हमारे बीच

 नहीं खून का रिश्ता

   जाना जरूर 

 फिर भी  लगाव है

दौनों के बीच

यह अवश्य जाना

 खोजा गया मैं    

तराशी गई  वह     

अटूट  बंध  

 है क्या  बंधन कच्चा  

खोज न पाए  

गहरा लगाव रहा

यही  समझा 

 उसमें  व मुझ  में     

जो मन भाया

कुछ भी नहीं होती  

अवधारणा  

रही मन में मेरे   

हुई  है  दृढ

तभी  किया एकत्र

एक घर में

 है  सभी का विचार  

 एक ही जैसा  

तभी रह रहे हैं

चहक रहे

एक छत के  नीचे  

 न दुराव है 

न  मन मुटाव ही 

आपस में है    

 समझ से बाहर

  है  मेरा  तेरा  

सब का रहा  सांझा    

 रहता ही  है 

29 मार्च, 2021

फितरत मन की


 

प्यार लगाव

कुछ भी नहीं होते

 भीतर भरी   

 फितरती  हो कर

चाहता  कुछ    

उसे यूँ बहकाते

कभी मन  गवाही

देता है  कुछ  

 हो जाता कुछ और   

 कठिन होता     

 प्रेम के  पाठ पढ़े  

पढ़ाए  जाते

 ह्मारी समझ से

बाहर होते

उसका  आनंद ही  

कुछ  और है    

  कह कर मनाना

प्रेम प्यार में

कठिन नहीं होता

  प्रेम का रंग  

 गहरा  होता जब

अपने  साथ

गैर की तलाश क्यों

करना चाहे 

 जब हो  तुम साथ   

 मेरे अपने

सदा रहते साथ

सुख दुःख में

क्यूँ  गैरों की तलाश |   

आशा  

28 मार्च, 2021

यदि प्यार से पुकारो

 




                        यदि प्यार से पुकारो  

दौड़े चले आएँगे

नफरत से कोई रिश्ता नहीं है

 ना ही लगाव हमारा  |

जिसने भी आधात किया

 पलटवार से होता स्वागत  

 बिना बात यदि रार बढ़ाई

 सुकून कहीं खो जाता   |

 आपसी मतभेद से  दुखी कर  

खुद भी सुखी न  रह  पाएगा

हमने किसी से  रार नहीं ठानी  

ना किसी बात को तूल दिया  है

 ना किसी के मन को दुःखी किया है |

 अपने प्यार को अन्धकार में  रखना

है  कहाँ का न्याय?

मेरी  समझ से  है परे

इन झमेलों से  खुद को अलग  रखा है

खुद  को बचा के रखा  है |

 स्वयं  पर है भरोसा इतना

चाहे कितना भी हो प्रलोभन  

कोई हमारे मन को

 फुसला नहीं सकता |

 सच्चा बन कर बहका नहीं सकता

 कोई भी उपहार या प्रलोभन

  मेरी मन के लोभ को जगा नहीं  पाया

 अपना गुलाम मुझे  बना नहीं पाया |

तेरा प्यार ही है एक

उसके आगे मुझे  कुछ नहीं सूझता

उसने  मन को भरमाया है

 उसको सच्चे  दिल से अपनाया है  |

आशा

27 मार्च, 2021

आज की होली





होली के रंगों  में वह मजा नहीं

जो आता है मिलने मिलाने में

गिले शिकवे दूर कर

वर्तमान में खो जाने में |

बहुत प्यार से मिन्नत कर के

 जब कोई खिलाता है गुजिया

उसके हाथों की मिठास

 घुल जाती है उसमें |

मन करता है हाथों को उसके चूम लूं

 फिर से और खाने की फरमाइश करू

फिर सोच लेती हूँ मन को नियंत्रित रखूँ  

लालच की कोई सीमा नहीं होती |

जाने क्यूँ उसकी बनी गुजिया की मिठास

बार बार खाने का   आग्रह

खींच ले जाता है उसके पास

जब तक समाप्त न हो जाए गुजिया

और और की रट लगी रहती है |

अंतस का बच्चा जाग्रत हो जाता है

 रूठने मनाने का सिलसिला

थमने का नाम नहीं लेता

बड़ा  प्यार उमढता है उस खेल में |

प्रतीक्षा मीठी गुजिया खाने की

प्रेम से होलिका मिलन की

जब तमन्ना पूरी हो जाती है

आत्मिक   संतुष्टि से बढ़कर कुछ नहीं |

आशा