17 सितंबर, 2021

मन क्या सोच रहा


 

                जब भी सोचा सोचती ही रही

               अवसर न मिला कुछ कहने का

मन ही मन घुटती रही

बेचैनी बढ़ती रही कुछ कह न सकी |

 उमस बढी मन के किसी कौने में 

स्थिति बद से बत्तर हुई  

 किससे मन की बात कहूँ  

 मैं निर्णय न कर  पाई  |

गिरह मन की न  खोल पाई

पर घुटन कब तक सहती

कोई न मिला जिससे कुछ बाँट पाती

अब मन की बेचैनी सहन न होती  |

उलझनें  बढीं बढ़ती गईं

जीना दुश्वार हुआ पर

 समाधान नहीं हो पाया   

कोई दिल से  अपना न हुआ

जिससे बाँट पाती उलझनों को |   

 कुछ तो  हल्का मन होता

 बोझ न उस पर रहता

पर इतनी समझ कहाँ दौनों में  

 ऐसा कब तक चलता |

दौनों ने राह  खोजी अपनी   

 और चल दिए अलग हो

  अपनी  अपनी राह पर

  मन में मलाल लिए |

          अब भी कभी जब सोचती हूँ

      मेरा मन नहीं मानता 

          क्या दौनों का निर्णय सही था

                मन तो न टूटता घर  न उजड़ता |

                 आशा 

15 सितंबर, 2021

सरस्वति वन्दना


                                          हे हंस वाहिनी 

श्वेत वसन धारणी

कमलासन पर

 तुम्ही विराजत |

तुम ही हो भारती 

अदभुद है छवि तुम्हारी 

वीणा पुस्तक धारणी

विध्या की देवी सरस्वति  |

ज्ञान दायनी मां शारदे

दो  सबको ज्ञान दान  

हो सब का उपकार

नमन तुम्हें  कमलासनी |

 सरस्वती जिसकी

 जिव्हा पर विराजती 

 मृदु भाषण से सदा 

जीवन सफल होता उसका |

ज्ञान धन  है ही ऐसा 

कभी क्षय न होता जिसका 

हैं सबसे धनवान वही 

जो है सरस्वति का उपासक |

आशा 

 

हो तुम मेरे ही कान्हां


 हो तुम मेरे ही  कान्हां

 यशोदा नंदन नन्द जी के दुलारे

राधा रानी शक्ति तुम्हारी

 लिए काली कमली और बाँसुरी साथ में  |

शीश पर मोर मुकुट सजा है

पीली कछोटी बंधी  कमर में

मुंह पर माखन लगा है

ऐसी छबि करती तुम्हें जुदा सब से |

अलग ही है पहचान तुम्हारी

बाल सुलभ चंचलता नयनों में

यही अदा प्यारी है मुझको

मैं हो जाऊं  तुम पर न्योछावर  |

                  ना मैं मीरा ना में राधा

                 रहूँ तुम्हारी अनुयाई  सदा

                 ऐसा ही भोला बचपन 

                    मुझे बड़ा भाया है 

                   क्यों न मैं जी लूँ उसे 

                  दिन भर धेनु चराऊँ 

                शाम पड़े गोधूली बेला में 

                   लौट कर घर आऊँ |  

                        आशा 


   

शा 

हम साहब तुम नौकर हमारे



 हम साहब तुम नौकर



हम साहब तुम नौकर हमारे

यह भाव कभी ना सफल हुआ है

जब भी देखा इस दृष्टिसे

मन में रोष पैदा हुआ है |

कैसी सोच उभरी थी मन में

अब सोच कर शर्मिन्दा हूँ

काश पहले से ही सचेत होते

झूठा अहम् न पालते

तभी जमीन पर टिक पाते

आँखें मिला कर जी पाते |

जब तक कुर्सी पर रहे आसीन
पहले विचार मन में होते

पर पद छिनते ही

सभी जमीन पर आजाते |

जब पहले भी अंतर न था जब बच्चे थे

फिर यह भाव उपजा ही क्यों

क्या यह तंग दिल होने का संकेत नहीं

ईर्षालू पैदा हुए हैं इस जरासे विचार से |

यह विचार था मिथ्या अभिमान

अब समझ में आया

पर अब पछताने से लाभ क्या

बीता समय लौट कर न आया |
आशा


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Rajat Hamta shared a live video.

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