01 दिसंबर, 2021

प्रातःवंदन (हाइकु )


प्रातः वंदन
होता है सुखदाई
दिल को छुए
हार न मानी
किसी बात से कभी
दृढ़ता रही

किससे कहें
मन की बात छिपी
अब मन में

प्रात:बेला में
पत्तियों पर बूँदें
शबनम की

जब नाचतीं
पत्तों पे थिरकतीं
आकृष्ट करें

आशा

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मन का मंथन


 

कभी अहम् कभी गरूर

कहाँ से आते आम आदमीं में

क्या कोई विशेष कक्षा होती

इन बातों की शिक्षा के लिए |

जब कक्षा में पढ़ने जाते   

कुछ भी अच्छा नहीं सीख पाते  

दुर्गुण  पीछा नहीं छोड़ते

चलती राह में भी उसे  पकड़ते |

उन पर  जब आत्म मंथन करते

उन विचारों पर मनन करते

मन ग्लानि से भर जाता

क्षण भर में ही मन में घर कर जाता |

जब अपनी आदतों का विश्लेषण करते

खुद से वादा करते बारम्बार

गलत राह पर न चलने का 

मन को वश में रखने का   |

यही यदि मन में दृढ़ता होती  

दृढ़ संकल्प लेते कुछ गलत न करते

  पलट कर न देखते उस ओर 

तभी सफल जीवन होता

 पैर न फिसल पाता |  

आशा 

30 नवंबर, 2021

कान्हां संग नेह लगाया

 


कान्हां संग नेह लगाया

वह कान्हां सी हो गई

ना मीरा बनी न जोगन

ना ही सिद्ध हस्ती हुई |

सारा जग त्याग दिया

माया मोह छोड़ दिया  

ममता न की किसी से

निर्मोही हो कर रह गई |

 दुनियादारी से हुई दूर  

आध्यात्म की ओर झुकी

झुकती ही गई फिर भी 

शान्ति को न खोज सकी |

कान्हां मय होती गई 

दिन रात ध्यान में लीन हुई

अब मन की बेचैनी दूर हुई

वह कान्हां में खो गई |

आशा  

 

 

29 नवंबर, 2021

कोठरी काजल की

 


काजल की कोठरी

में पहुंच काजल की 

कालिख से  कैसे बचेंगे |

कितना भी बच कर चलेंगे

 काला रंग काजल का

लग ही जाएगा |

सोचेंगे साबुन से 

दागों  को   छूटा लेंगे

पर वह भी गलत होगा

दाग फीके तो होंगे फिर भी दिखेंगे |

सावधानी यदि नहीं बरती

कालिख बढ़ती ही जाएगी 

कैसे उनसे छुटकारा मिलेगा

कोई हल नजर नहीं आता |

आशा 


भोर का एकल सितारा देखा


 
भोर का एकल सितारा

देता संकेत सुबह के आगमन का

रश्मियाँ धीरे से झाँकतीं देखती

 वृक्षों की डालियों के बीच में  छिप कर |

जब आतीं खुले आसमा में

अद्भुद आभा उनकी होती   

सध्य स्नाना युवती सी

सजधज कर जब आसमा में विचरतीं |

बहुत आकर्षण होता उनमें

जो खींचता हर दर्शक को अपनी ओर

ये फैली होतीं जब वृक्षों पर

अद्भुद ही द्रश्य होता वहां का |

पेड़ के नीचे बिछी श्वेत पुष्पों की चादर

वहां  से उठने न देती

मन हो जाता विभोर

कहीं जाना न चाहता वहां की शान्ति छोड़ |

खुद से वादा करती

प्रति दिन यहीं आऊंगी

सुबह   की सैर के लिए

मौसम का नजारा देखूंगी जी भर कर |

आशा 

28 नवंबर, 2021

कलम तो कलम है


 

                              कलम तो कलम है वही रहेगी 

लिखने वाले बदल जाएंगे
विचार बदल जाएंगे
वह न बदलेगी |
विचारों को संकलित करना
उनको पुष्पों सा एक माला में पिरोना
रहता तरीका भिन्न सदा
पर लेखक के मन परकलम दिखती निर्जीव
जैसा चाहो उपयोग करलो
पर हो जाती सक्रीय
जब गति पकड़ती |
उसे कोई व्यवधान
पसंद नहीं आता
अपने किसी कार्य के मध्य
वह पूर्ण समर्पण से कोई
कार्य सम्पन्न करती|
वह जो भी कार्य करती
लेखक की संतुष्टि के लिए
लिखने वाले मन का विचलन
कभी भी दुःख दे जाता |
दो कदम भी आगे न बढ़ने देता
यहीं वह हार जाती लाचार होती
कितनी भी कोशिश करती
सभी विफल हो जाती |
फटे पन्नों का प्रदर्शन होता पूरे कमरे में
वह सजा दीखता अनोखे अंदाज मे
तभी बहुत शर्म आती उसे
अक्षम हो कर एक ओर कौने में
असहाय से पड़े रहने में
कुछ कर न पाने में |
कलम की सक्रीयता
यूँ तो कभी कम न होती
पर लेखक के मन पर
निर्भर रहती |
आशा


खुद कुछ कर न पाओगे

 

सागर सी  गहराई तुम में

 डूबेतो निकल न पाओगे

हर  बार हिचकोले खाओगे

घबराओगे बेचैन रहोगे |

भवर में गोल गोल घूमोंगे  

डुबकी  लगाओगे

 फिर भी बाहर न आ पाओगे |

खुद तो अशांत होगे

दूसरों को भी उलझाओगे

बाहर आकर शान बताओगे

मन की शान्ति का दिखावा करोगे |

यह दुहेरी जिन्दगी जीने का

क्या लाभ ना तो  मन को शान्ति मिलेगी

न पार उतर पाओगे |

भवसागर में यूंही

भटकते रह जाओगे

कितनों के आश्रित रहोगे

खुद कुछ न कर पाओगे |

आशा