22 जनवरी, 2022

आज है मन उदास उसका


 

              आज है उसका मन  उदास

               किस कारण जान न पाई

                किसी ने कुछ कहा नहीं

ना उसने किसी से पाला बैर |

दो बोल प्यार के भी कड़वे लगते  

ऐसा भी होता है  कभी सोचा नहीं

अब इतनी उग्रता आई  कैसे 

आया मन में दुराग्रह क्यूं किस लिए |

 यही अर्थ समझ में आया

जब उसने स्नेह जताया था

तब कोई महत्व नहीं था उसका

जितनी बार किया ध्यान आकर्षित

उतनी ही बार नकारा गया उसको  |

यही   समझ में आया

कोई जगह नहीं थी रिक्त

उसके मन मस्तिष्क में |

अब है केवल एक दिखावा

पहले घुमते खाते थे

 एक साथ रहते थे

 हर बात सांझा  करते थे |

अब यह बात नहीं रही है

 छल कपट ने ले लिया है स्थान  

 पहले की प्रेम भरी बातों का

सब दिखावा है सत्यता कुछ भी नहीं |

आशा

 

 

21 जनवरी, 2022

आज की राजनीति




 

कब तक यही होता रहेगा

केवल बातों से कुछ न होगा  

बहसवाजी का कोई हल नहीं 

कार्य करेंगे तभी कुछ होगा|

मुद्दे क्या हैं  हल क्या हो उनका 

आज तक स्पष्ट न हो पाया 

राजनीति का स्तर इतना गिरा कि  

अब बहस सुनना तक

सहन होना मुश्किल हुआ 

कोई अर्थ नहीं निकलता |

 अपशब्दों का प्रयोग सामान्य हुआ     

अब वे  आशीर्वाद जैसे दिए जाते हैं

बेपैंदे के लोटे हैं आज  के नेता

जिस ओर दम हो वहीं लुढ़क जाते हैं |

ना कोई उसूल उनके बारबार पार्टी बदलते 

ना ही किसी के अंध भक्त

  एक पार्टी में शामिल होते फिर पाला  बदलते |

प्रजातंत्र हुआ खोखला 

मंच पर भाषण शोर में बदले 

लोकतंत्र भीड़तंत्र  कब हुआ  कैसे हुआ

ऐसा अंधड़ आया कैसे ज्ञात नहीं | 

  आशा

सलाह यदि अच्छी हो


 

किसी का कहा न मान कर

जीवन को भार बना लिया

की अपने  मन की

 अब कष्ट में हूँ  |

किसी की सलाह यदि अच्छी हो

जीवन सफल बना देती  

सही मार्ग दिखा कर

उसकी उलझने मिटा देती |

पहले कसम खाई थी

किसी का कहा न मानूंगी

इसका विपरीत प्रभाव हुआ

मन में  बड़ा विचलन  हुआ |

हर बात मानूं या न मानूं

कोई बाध्यता नहीं किसी की    

पर है यह समझ का फेर

जिस ओर चाहे ले जाए मुझे  |

सच्चा मित्र वही है जो

सीधी सच्ची राह दिखाए

मार्ग से भटकने न दे

  अपनी ओर से पूरी कोशिश करे |

अब मैंने समझ लिया है

 मेरी भलाई है किस में

अपना भला बुरा समझती हूँ

यह अंध भक्ति नहीं है |

आशा     

20 जनवरी, 2022

कब से बैठी राह निहारूं


 कब से बैठी राह निहारूं

 तुम्हारे आने की  

नयन थके द्वार देखते

हर आहट पर चोंक जाते |

 जाने तुम कब आओगे

कब तक तरसाओगे

ऐसा क्या गुनाह किया मैंने

जिसकी मुझे खबर नहीं |

यदि बता दिया होता

कुछ हल निकल ही आता  

अपनी त्रुटि जान  क्षमा मांगने से

 मन का बोझ  कम हो जाता |

चाहत ने मुझे डुबोया है

मुझे दुःख इस बात का है

 कि तुम भी  नहीं जानते   

किससे क्या अपेक्षा रही मेरी |

मुझे खुद ही पता चल जाता

जरासा इशारा तो किया होता

मैंने  अपनी कमियों को

 सुधार लिया होता|

 मैं अपने को अपराधी न समझती 

हुई जो भूल अनजाने में   

 उसके लिए ही क्षमा प्रार्थी हूँ

मैं सम्हल सम्हल कर पैर रखूँगी  |                                            

 मन की बात क्यों समझ न पाई  

तुम्हारी हर बात आँखे बंद कर मानना 

क्यूँ न हर बात में सहमती जताना

यही मेरी सजा होगी |

 अब जान लिया है मैंने

मेरा खुद का  कोई वजूद नहीं है

 पर तुम्हारे बिना भी मेरा

अपना कोई नहीं है |

आशा 



 


 

19 जनवरी, 2022

हाइकु (वसंत पंचमी )

 


ऋतु  वासंती

पहने पीले  वस्त्र 

आई धरती 


आया वसंत

मेरे अंगना में ही

भला लगता

 

पूजन किया

नैवेध्य बनाया है

बड़े स्नेह से

 

है  सरस्वती  

सब से प्रिय मुझे

कमलासनी

 

ऋतु  वासंती

 मोहक हवा चली

आसमान  में

 

 माँ सरस्वती

 तुम्हें अर्पण किया

दिल अपना

 

पीत वसन   

धारण कर लिए

मोहक लगे

 


ज्ञान दायनी  

मन को शुद्ध करे

माँ सरस्वती


वसंत पंच्मी

दिन सरस्वती का 

पूजन करो


है श्रद्धा भाव  

रचा बसा धरा के 

कण कण में  


पांच वर्ष में  

पट्टी पूजन हुआ  

शिक्षा प्रारम्भ 


                      आशा 

 

18 जनवरी, 2022

वादाखिलाफी


                                बड़े अरमां रहे तुम से

कि तुम पूरा करोगे

अधूरे अरमान उसके

 बीते कल में जो सजाए उसने |

पर तुम भूल गए  

न जाने कैसे हुए बेखबर

 उसके अरमानों से |

अब क्या सोचूँ

जब हम ने दूरी

 अपनाई उससे

वह समय बीता   

 फिसल गया हाथों से |

अब कोई चारा न बचा

तुमको क्या दोष दूं

मैं भी समय रहते

 याद दिला न सकी तुम को |

अब लगता है किसी से

कोई वादा न करो

जब तक पूरा करने की क्षमता न हो

यह वादा खिलाफी महंगी पड़ी उसे

बिना बात बढ़ चढ़ कर वादे करना

फिर उन्हें पूरा न करना

है यह कहाँ का न्याय बताओ |

हुआ यह गलत अफसोस है मुझे

मुझे पछतावा हो रहा

 तुम्हें हो या न हो

आगे से कोई ऎसी बात  न हो

जो दूसरे के लिए महत्व रखती हो

मेरा सीधा सम्बन्ध न हो जिससे

भूल से भी नहीं पडूँगी बीच में |

बड़ी नसीहत ली है मैंने

अपनी लापरवाही से आगे न बढूँगी  

तुम भी पीछे हट जाना

इसी में भलाई है दौनों की |

आशा 

17 जनवरी, 2022

सीमा पर तैनात

 



 हो सीमा पर तैनात 

तुम हो कर्तव्य पथ पर अग्रसर

सारी श्रद्धा से जुड़े

कर्म से निष्काम भाव से |

हो तैनात सीमा पर

हो समर्पित पूर्ण रूप से

अपने कार्य के प्रति

है यही प्रिय मुझे |

मुझे गर्व होता जब तुम

जीत को प्राप्त करते हो

पूरे मनोयोग से

प्राथमिकता  देकर उसे |

कोई शब्द नहीं मिलते

तुम्हारी दृढ इच्छा शक्ति के 

दिल से  वर्णन  के लिए

जब भी कोई कार्य हो

तुम्हारी सफलता के लिए |

 जो कार्य तुम्हें सौपा जाए

करते हो पूरी शिद्दत से

हो कर्तव्य प्रथम के अनुयाई

यही तत्परता मुझे भाई |

हमें गर्व है तुम्हारी सोच पर

तुमने सच्चा न्याय किया है

अपने चुने व्यवसाय से

कर्तव्य के प्रति निष्ठा रखने में |

दिल से नमन करते हैं

तुम्हें और तुम्हारी जननी को

तुमसे यही अपेक्षा रही

अपने कर्तव्य के प्रति |

आशा