05 फ़रवरी, 2022

फूल और कांटे


 

फूल और कांटे एक साथ रहते

कभी साथ न छोड़ते

भ्रमर तितलियाँ गातीं गुनगुनातीं

पास आ मौसम का आनंद उठातीं |

 जब भी पुष्पों पर आता संकट

कंटक उनकी करते रक्षा

खरोंच तक न आने देते  

सदा साथ बने रहते |

होते इतने होशियार कंटक

अपना कर्तव्य निभाने में  

कोई फूल तक न पहुँच पाता

उनसे बच कर जा न पाता |

जो प्यार पुष्पों से करता

कैसे भूलता संरक्षक काँटों को

कितना बचता कैसे बचता 

उनसे  दूर न रह पाता |

स्नेह तनिक भी कम न होता  

वह  धन्यवाद देना न भूलता

 कंटकों को पूरी क्षमता से 

अपना कर्तव्य निभाने के लिए |

 आशा

04 फ़रवरी, 2022

रैना बैरन हुई

 



रैना बैरन हुई उसकी 
पलकें न झपकीं एक पल भी
इन्तजार किसी का करते  
रात्रि कब बीती मालूम नहीं  |
भोर हुआ जब मुर्गा बोला
पक्षियों ने बसेरा छोड़ा
चल दिए भोजन की तलाश में
सर पर खुले आसमान में |  
धूप खिलते ही तंद्रा टूटी उसकी  
जल्दी किया प्रातःवंदन
फिर कियी जलपान तैयार हुई
  चल दी अपने कार्य स्थल की ओर|

किसी कारण जब मन होता विचलित  

उसका असामान्य  व्यवहार देख
 सब उत्सुक रहते कारण जानने  को 
किसे बताती क्यों निदिया बैरन हुई |
उसे समझने में देर न लगती
क्या कारण रहता रात्रि जागरण का  
तुम्हारी राह देखना मंहगा पड़ता 
बहुत लज्जा आती पर क्या करती |
बहाने भी कितने बनाती
भारी पलकें सब बतातीं   
घुमा फिरा जब बातें होतीं
सच्चाई सामने आ ही जाती |
फिर भी पूरी बात बता ना पाती
वह कहाँ उलझी रही किन बातों में
मन कैसे उलझा उन सब में
हुई बैरन रात यह कैसे बताती |

आशा 

01 फ़रवरी, 2022

दोपहर की धूप और वटवृक्ष की छाया

 


मैं दोपहर की धूप धनी 

तुम घनेरी छाया वटवृक्ष की

असंख्य जीव लेते आनंद

तुम्हारी छाया में रुक कर |

मुझ से सब दूर भागते

कोई न आता पास मेरे

जल जाने के भय से

यही दुःख सालता रहता मुझे |

विचार सोचने को करता बाध्य   

 सब मेरे ही साथ क्यूँ किस लिए?

 मेरा किसी से कोई वैर नहीं है

 समय पर सब मेरा भी उपयोग करते 

अब तो जानते हुए भी दुःख न होता

कि हूँ तपती धूप दोपहर की

जिससे जलता तन सब का

सभी धन्यवाद दिए बिना ही चले देते|

मतलब की है दुनिया सारी

किसी से क्या गिला शिकवा करूं

मतलब होता तो रिश्ते बना लेते

पर पलट कर याद तक नहीं करते |

 यही अच्छाई तुम्हें सब से जुदा करती

 किसी से कोई अपेक्षा नहीं तुम्हें  

आया जो पास तुम्हारे

उसे भी समेटा बाहों में तुमने |

शीतल करती तन छांव तुम्हारी 

सब देखते आशा से तुम को

 छाँव की  उन्हें  अपेक्षा रहती    

वही जीवन में रस भरती |

आशा

31 जनवरी, 2022

उलझन मन की


 

उलझन होती जब मन में

कुछ भी नहीं होता सोच विचार में 

 सोचते ही बनी बात बिगड़ जाती है 

 उलझन और बढ़ती जाती |

जब भी मंथन किया मन का 

 जानना चाहा इतनी बेचैनी क्यूँ ?

 उत्तर जान ना पाई निराशा हुई 

मन और बोझिल हो गया |

 अनर्गल बातों ने लिया विकराल रूप  

किया बेचैन मन को नींद का टोटा हुआ

 आई न नींद स्वप्न सुहाने भी खो गए   

किये नैन बंद कब भोर हुई याद नहीं |

चिड़ियाँ चहकीं प्रातःकिया वंदन 

भुवन भास्कर ने खुश हो स्वीकारा  

 रश्मियाँ आईं खिडकी से झांकती

अनजानी व्यथा ने घर किया मन में |

डरती हूँ अस्थिर है मन चंचल 

आगे क्या होगा इसके विचलन से

क्या वह स्थान मुझे मिल पाएगा ?

जिसकी अपेक्षा रही मुझे बचपन से |

मुझे कौन बचाएगा इस उलझन से

 चित्र न बना पाई उसका कैनवास पे

सातों रंग न भर पाई जीवन के  

जितनी की कोशिश व्यर्थ हुई |

असफलता हाथ लगी

 कुछ न कर पाई  

मन संतप्त हो खोने लगा अस्तित्व अपना 

डूबी स्वयं अपने  आप में |

कहाँ भूल हुई मुझ से

 जिसकी याद नहीं  

 उलझनें ही उलझनें हैं 

जिनसे मुक्ति नहीं |

  आशा

 

30 जनवरी, 2022

किसी से प्यार न कीजे



किसी से ऐसा प्यार न कीजे

जब तक उससे स्वीकृति न लीजे

यदि किया ऐसा टूट जाओगे

हो कतरा कतरा बिखर जाओगे |

कोई तुम्हारा साथ न देगा

जिसने यह नेक सलाह दी थी

 बिना प्यार सब सूना लगता

अब  मन कहता प्रभु से प्यार करो

 यही सन्मार्ग दिखाता सब को  |  

बातें जो मन को  भटकातीं शोभा नहीं देतीं

जब सजा मिली इनकी वह मित्र भी  दूर हुआ

कहलवाया उसने  वह मजबूर था

सही सलाह न दे पाया  

उसने भी समझ लिया पहचान लिया 

 अपने उस  सतही मित्र को

 जो बड़ी बड़ी बातें करता था

किया पलायन उसने  क्षण भर में |

आवश्यकता  पड़ने पर किसी ने

मदद न की थी   

अब तो सलाहों का भी

टोटा हुआ क्या करे?  

मन को पाश्च्याताप हुआ

लज्जा आई खुद पर |

 की आराधना प्रभु की  

 गुहार लगाई सही राह दिखलाने को   

अपने विचारों पर

 खुद ही हुआ शर्मिन्दा |

उसकी भक्ति में ही हुआ लीन  

अब ईश्वर का वरधहस्त है सर पर 

प्रभु के सिवाय किसी से

मदद न लेने की कसम खाई है |

आशा 

29 जनवरी, 2022

पिंजरे में बंद जीव



पञ्च तत्व से बनाया पिंजरा

द्वार बंद करना शेष रहा

तभी जीव ने कदम रखा

पीछे से आए माया मोह मद लोभ |

जैसे ही कदम रखे पिंजरे में

द्वार स्वयम  ही बंद हो गया

जीव ने कोशिश की भर पूर पहले

वह टस से मस न हुआ

बंद ही रहा बहुत समय तक |

जीव ने सोचा क्या करे

भरपूर माया का उपयोग किया

माया में हो लिप्त गया

मोह ने अपने भी  पैर पसारे

दौनों का मद ऐसा चढ़ा उस पर

वह मदांध हो गया इतना की

वहीं फंसा रह गया बहुत समय तक |

पर जब हुआ जर जर पिंजरा

याद आई फिर से स्वतंत्र विचरण की

उस द्वार की जिससे

पिंजरे में  प्रवेश किया था |

वह बेचैन हुआ आध्यात्म की ओर झुका

हर बार ईश्वर का ध्यान करता

फिर द्वार खोलने का प्रयत्न करता

माया मोह से मन उचटा उसका |

एक दिन पिजरे का द्वार खुला रह गया

वह भूला उन चारों को जिन ने बांधा था उसको

उड़ चला स्वतंत्र हो अनंत में  

 खाली पिंजरा रह गया जो पञ्च तत्व में विलीन हुआ 

 इस भव सागर में |

आशा


 

28 जनवरी, 2022

आखिर कब तक

 

 कब तक बिना सुविधाओं के

 जन जीवन कितना हुआ कठिन

यह तुम क्या जानोगे 

तुमने कभी अभाव देखा ही नहीं |

दिन रात काम करते तब भी

दो जून की रोटी तक नसीब नहीं होती 

यही हाल रहा तो कैसे जीवन बीतेगा

आधी दूर भी न चल पाएंगे

अधर में अटक कर रह जाएंगे |

धनवानों के घर जो भोजन

फेंक दिया जाता घूरे पर

वही बीन कर खाना पड़ता

 विडंबना नहीं तो और क्या है|

किसी की थाली में षटरस भोजन

कोई भूखे पेट ही सो जाता

उसे कुछ भी हांसिल नहीं होता 

है यह कैसी नीति उसकी |

जब जन्म दिया धरा पर  

क्यूँ न दीं सुख सुविधाएं

महनत की कोई कीमत नहीं क्या ?

मजदूर यूँ ही बिना बात पिसते रहते

कभी दया न आई मालिकों को |

जब जन्म लिया था एक साथ

फिर तुम कहाँ और वह कहाँ

किसी के भाग्य में क्या लिखा प्रभू ने 

है यह न्याय कैसा उसका

कभी सोच कर देखना | 

यदि गहराई से सोचा समझ जाओगे

यह अंतर किसलिए ?

शायद है पूर्व जन्म के कर्मों का फल   

या है पूर्व जन्म के किये कर्मों की सजा  

एक जन्म में उस को जो कार्य सोंपा जाता

जब निष्कर्ष निकलता देर हो चुकी होती

मृत्यु का डेरा आ जाता  |

आत्मा यूँ ही भटकती न रहती

पिछले कर्मों की सजा पाते ही 

इस जन्म में यहीं पर जब तक 

 अपनी सजा पूरी नहीं कर लेती

आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती |  

आशा