15 फ़रवरी, 2022

हाइकु


                                           छाई  घटाएं 
 

बेमौसम वर्षा है 

सर्दी बढ़ेगी 


हआ  सबेरा 

सोती दुनिया जागी 

हुई सक्रीय 


क्या जुल्म नहीं 

है सताना किसी को 

कष्टकर है 


चांदी से  बाल 

चमकता चेहरा 

अनुभवी है 


सब देखना 

फिर वही बताना 

उलझाना ना 


उससे स्नेह 

बड़ा मंहगा पडा 

सस्ता नहीं 


मधुमालती 

कितनी है सुन्दर 

मन मोहती


यही मौसम 

सर्दी की ऋतू होती 

कष्टदायक 


मैं और तुम 

नदी के दो किनारे 

कभी न मिले 


मन बेचैन 

उफनती नदी सा 

न हुआ शांत 


आशा 


13 फ़रवरी, 2022

क्या समस्या तुम्हारी


 

कब तक किसी का

 सहारा लोगे

क्या कभी खुद पर

 भी भरोसा रखोगे |

 है यही समस्या तुम्हारी

किसी  कार्य की रूप रेखा नहीं

स्पस्ट तुम्हारे मन में

कभी कुछ और क्या चाहत है |

नहीं तुम जानते

क्या करना है

क्या करना चाहते हो

जिससे सफलता हाथ आ पाए |

कुछ भी फल न मिला है

सिवाय असंतोष के

असफलता ही हाथ आई है

यहीं तुमने मात खाई है |

09 फ़रवरी, 2022

चांदनी रात में




 

चांदनी रात में जंगल में रहे 

प्रकृति से जुड़े एहसास अनोखा हुआ 

सर्दी में रात यहाँ जब भी गुजारी

भाँति भाँति के स्वर कानों में गूंजे  |

पहचान  हुई वहां आदिवासियों से

उनके तौर तरीको से 

खान पान की आदतों से

पूजन अर्चन के तरीकों से

अपनाई गई वहां संस्कृति से |

है भारत इतना विशाल  कि विविध संसकृतियां जानना कठिन 

  भाषा वैविध्य सरलता से पहचाना जाता

पर रीति रिवाज जुदा एक दूसरे से |

अनेकता में एकता है भारत की विशेषता

 सभी जन एक दूसरे से रखते स्नेह

 भेद नहीं आपस में करते 

 मिलते सब स्नेह से जब भी मिलते |  

पर्यावरण प्रकृति और मानव का

होता भिन्न पर बड़ा संतुलन रहता

 आगे बढ़ते जब प्रकृति की गोद में

 बड़ा तालमेल रहता आपस में |  

हम उनके वे मित्र हमारे 

यहाँ के सभी हैं रहने वाले

 है लगाव गहरा हमें अपने देश से

जन्में हम देश के लिए |

कितनी भी समस्याएँ आएं

हमारी जड़ें हैं इतनी गहरी

कोई अलग नहीं कर सकता

हमें हमारे अपनों से |

आशा 

08 फ़रवरी, 2022

मधु मालती



मुझे रहा  बड़ा  भरोसा अपने आप पर

अपने रूप रंग पर

जब भी  बहार  आती

 रंग बिरंगे  पुष्प गुच्छ खिलते |

जाने कितनी तरह की बेलें 

लोगों के द्वारों पर लगी  रहतीं

उनकी शोभा देख कर  

 मुझे अपार प्रसन्नता होती |

खुद को उनमें से एक देखकर

 अपना  महत्व  देख पाई समझ पाई

पहचान अपनी भी कम नहीं

यही बात मुझे गौरान्वित करती |

मैं सब से आगे सबसे ऊपर

जब अपने को पाती

कारण से भी अनजान  नहीं मैं   

वे हैं  मेरे रंग बिरंगे पुष्प गुच्छ |

लाल सफेद मन  मोहक लगते

तेज धूप से भी  वे प्रेम  रखते

जल्दी न मुरझाते सदा प्रफुल्लित करते

यही मुझे विशेष बनाते अन्य बेलों से |

मुझे खुद पर  कोई गर्व नहीं

हूँ बेल  मधुमालती की 

लंबा है जीवन प्रसन्नता से जीती हूँ  

नयनों को सुख देती हूँ |

                                    आशा 


कुछ हाइकु


                                           किया किसी से 

कभी भी  बैर नहीं 

दी है  ममता  


सारी दुनिया 

 सोती थी बेखबर   

 तुम  अचेत 


जल नेत्रों का 

 बहता सरिता सा  

मन  भिगोया  


मन बेकल 

हुआ बड़ा  उदास 

दुखद लगा 


शांति आत्मा की 

सरल नहीं पाना 

इस जग में  


गीत संगीत 

कानों में गूँजता  है 

वर्षों बरस 


तुम सा स्नेही 

ममता वाला वहां  

 कोई नहीं  है 


सरल नहीं 

है तुम जैसा होना 

की थी तपस्या 


स्वर सम्राज्ञी 

संगीत की  पारखी  

तुम ही हो 


तुम लता जी 

  हो मधुर  भाषिणी  

 विशेष यही 


आशा 


07 फ़रवरी, 2022

लता युग की समाप्ति


 

सब तुम्हें याद करेंगे   

जब भी बाग से गुजरेंगे

गीतों की एक एक लाइन से

 दूरी न सह पाएंगे प्यार से गुनगुनाएंगे |

तुम्हारा गीत संगीत और सुर तरंग  

मन में घर करते ऐसे

 कभी भुला न पाते

उन में खो कर रह जाते |

मैं प्रतिदिन वहां जाने का

तुमसे मिलने का मन बनाती

 कोई अवसर न छोड़ती

 प्रतीक्षारत रहती तुसे मिलने को |

कब भोर हो और मैं वहां पहुंचूं

जहां तुमसे हो साक्षात्कार

 मन को अपूर्व सुकून मिले तुमसे मिल

है विशेषता तुम्हारी सादगी  भरी इस उम्र की|

 तुम्हारे संगीत की महक का आनंद लूं

मन में बसालूँ सरस्वती के इस अवतार  को

तुम्हें एहसास  न होगा है कितना लगाव रहा

 संगीत प्रेमियों को तुम्हारे मीठे  स्वरों से |

जब तुम्हारे  गीतों से दूर होती हूँ

 मन उदास रहता है 

मन नहीं लगता

जब  दूर होती हूँ उनसे |

बुरा हाल हुआ है कलम रुक गई है

तुम्हारे बिछुड़ने के बाद  शब्द नहीं मिलते

मन की बात लिखने को

जब से तुम इस दुनिया से रूठीं हो |

 नम नेत्रों से जब दी विदाई

तुम हुई विलीन पञ्च तत्व में  

नहीं रहा सरस्वती का

यह अवतार हमारे साथ |

अनमोल रत्न को  खो दिया    

अतुलनीय  क्षति हुई देश को

 स्वर कोकिला से हो दूर     

हुआ समाप्त संगीत का लता युग |

आशा 

06 फ़रवरी, 2022

मन की बेचैनी

 



मन हुआ बेकल बेचैन

 कोई कार्य सम्पन्न न कर पाया

किसी कार्य से न जुड़ कर

 खुद का आकलन न कर पाया  |

 आस्था की ओढ़ी चादर

बहने लगा  भक्ति की नदिया में

मन को व्यस्त रखने को  

बेचैनी से बचने को |

सरिता की गति सी बहा बहता गया   

तेज बहाव की गति के तालमेल के साथ

भक्ति की नैया में हो कर  सवार

 किनारा कब आएगा आज तक  पता नहीं |

जब उम्र का यह पड़ाव भी पार किया

मन में हुई उथलपुथल बेहद

जाने कब बुलावा आ जाए

हलचल है दिल में कुछ भी निश्चित नहीं |