07 मार्च, 2022

मन के जीते जीत

 


ह्रदय के हारे हार है

मन के जीते जीत

कोई उससे न करे प्रीत

जिसकी नहीं प्रीत  किसी से  |

बहुत देखा सुना समझा

दिया वास्ता जब उसने

कोई अर्थ नहीं निकल पाया

थी सच्चाई दूर बहुत |

 विश्वास उठ गया उस पर से

अब लगती वह भिन्न सब से

है  मेरा नजरिया या बहम मन का

सोच नहीं पाया अभी तक |

यदि सोच लिया होता

जजबातों  में न बहता नदिया सा

पैनी दृष्टि रखता

खुद को न बहकने देता |

  पहचान यदि गैरों की

मन में बस जाती

फिर कोई भूल न होती

अपनों में और गैरों की परख में  |

अपने तो अपने ही हैं

कोई सानी नहीं बाह्य  तत्वों से

करते हैं जितना दुलार दिल से

वही है सच्चा कोई दिखावा नहीं |

आशा

 

06 मार्च, 2022

सफलता तक पहुंची


 

दिग दिगंत में आसपास

कोई खींच रहा था उसको अपने पास 

 उस में खो जाने के लिए

जीवन जीवंत बनाने के लिए |

जागती आँखों से जो देखा उसने

 स्वप्न में न  देखा था कभी जिसे 

वह  उड़ चली व्योम में ऊंचाई तक

पर न पहुँच पाई आदित्य तक |

 ताप सहन न कर पाई जो था आवश्यक

गंतव्य तक पहुँचने  के लिए

उसने सफलता को जब  नजदीक पाया

मन खुशियों से भर आया |

सफलता उसने इतने करीब देखी न थी

 नैना भर आए थे उसके यह देख

दोबारा कोशिश की फिर से  

अब दूरी कुछ कम हुई दौनों में

पर पूरी तरह  सफल न हो पाई |

 आत्मविश्वास मन में आस्था ईश्वर पर   

 नाम लिया नटनागर का साहस जुटाया

अब आसान हुआ वहां पहुँच मार्ग

 चमक सफलता की रही  चेहरे पर |

आशा

05 मार्च, 2022

आँखों से पर्दा हटा है





                            प्यार क्या है दुलार किस लिए 

यह दिखावा किस लिए किसके लिए 

मन से तो ये भाव उपजते नहीं 

क्या हो गया उसे |

 वह उलझी रहती दिखावे में 

वह  है कितनी अलग सबसे 

अपने इस सतही  व्यवहार में 

 प्रयत्न अथाह  किये उसने |

असफलता ही हाथ लगी 

मन के भाव छिपाने में 

यह भी स्पष्ट नहीं मन में

 अब वह क्या करे |

किससे  सहायता मांगे 

मन की गुत्थी सुलझाने में 

न जाने क्यों भय बना रहता है 

कोई उससे दगा तो नहीं करेगा  |

यह संशय पनपा कैसे 

एक बार धोखा खाया है  उसने 

अब तो नजदीक जाने से भी 

भय  लगता है उसके |

कभी सोचती है मन के बारे में 

वह  इतनी कमजोर तो कभी न थी

भय ने अपना राज्य जमाया कैसे 

उसका अस्तित्व ही हिला कर रख दिया |

आत्म विश्वास डगमगाया है 

 इसी  कमजोरी ने पचास साल पीछे किया है 

वह उंगली पकड़ कर चलने में 

खुद को महफूज समझती है  |

प्यार से  दुलार से आँखों का पर्दा हटा है 

मन का विश्वास  जाने कब लौटेगा 

उसी पर सोचने की नीव टिकी है 

जीवन की सच्चाई यही है |

आशा 





01 मार्च, 2022

कैसे सोचा


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नेत्र खोल कर न देखा
जो भी देखा सतही देखा
उस को देख अन्देखा किया
यही हाल मन का भी है
खोए रहे स्वप्नों में
कभी छोटी सी बात भी छेनी सी चुभती
बड़ी बात सर पर से गुज़री |
किसी की बात मन को न चुभी
कोई गहरा घाव कर गई
मुझसे अपेक्षा तो सब रखते हैं
पर कोई जानना नहीं चाहता |
कभी किसी बात को गंभीर होकर न लिया
मेरी अपेक्षा है क्या किसी को न जानने दिया
यही विशेषता का आकलन किया
अपने को कैसे समझाया अब तक न सोचा |
शायद यही जीवाब जीने का अंदाज नया |
आशा
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नेत्र खोल कर न देखा

जो भी देखा सतही देखा

उस को देख अन्देखा किया

यही हाल मन का भी है

खोए रहे स्वप्नों में

कभी छोटी सी बात भी छेनी सी चुभती

बड़ी बात सर पर से गुज़री |

किसी की बात मन को न चुभी

कोई गहरा घाव कर गई

मुझसे अपेक्षा तो सब रखते हैं

पर कोई जानना नहीं चाहता |

पेक्षा है क्या किसी को न जानने दिया

यही विशेषता का आकलन किया

अपने को कैसे समझाया अब तक न सोचा |

शायद यही जीवाब जीने का अंदाज नया |

आशा