16 मार्च, 2022

दामन की छाँव में



माँ तुम्हारे दामन की छांव में

जो सुकून मिलता था 

भूली नहीं हूँ अब तक

उसके लिए तरसती हूँ अब |

जब भी पुराने अपने मकान के

 सामने से गुजरती हूँ

तुम्हारी आवाज सुनाई देती है  

और तुम्हारी  छवि मेरे आसपास होती है |

मैं आज भी उन यादों से

उभर  नहीं पाती यादें बचपन की

 मुझे आज भी बारम्बार सतातीं  

क्या करूं बचपन लौट नहीं पाता |

 बचपन बीता तुम्हारे दामन की छाया में

आया योवन बचपन को विदा किया

हुई व्यस्त घर गृहस्ती में

फिर बाणप्रस्थ में कदम रखे 

तब भी यादों से दूर न हो पाई  |

 यादों से दूर होने की कल्पना तक नहीं कर सकती   

चाह है मेरी यही बीते सारा जीवन

 तुम्हारे दामन की छात्र छाया में

जन्म जन्मान्तर तक तुम ही रहो माँ मेरी |

आशा 


15 मार्च, 2022

नसीब अपना अपना

 

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नसीब अपना अपना -
जितनी जल्दी सब मिला
मेरे मन का मयूर खिला
जितने थे अरमान
सिमट कर न रहे मन में |
किसी की नजर न लगे
मेरे भाग्य पर ग्रहण न लग जाए
बिना मांगे मुझे वह सब मिला है
जिसकी न थी कभी कल्पना मुझे |
कमल का फूल खिला है
मेरे मन मंदिर के अन्दर
यहीं जाकर किसी से यह सब
मांगने का मन होता है |
मैंने ध्यान किया प्रभु का
विश्वास किया अपने भाग्य पर
बिना मांगे सब कुछ मिला
है यही नसीब अपना अपना |
आशा
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सम्मान


सम्मान मिले न मिले

 अपना कर्तव्य है प्यारा मुझे

यदि न्याय अपने कर्तव्य से न किया

मेरा मन संतप्त हो जाएगा |

परोपकारी जीवन जीने का था

 अरमां रहा बचपन से ही मुझे

अब भी है और भविष्य में  भी रहेगा

मैं अपना कर्तव्य निभाती हूँ |

पूरी शिद्दत से समर्पान भाव से

सम्मान नहीं चाहती बदले में

अपार संतुष्टि मुझको मिलाती है

कोई एहसान नहीं करती किसी पर |

प्राथमिकता देती हूँ अपने कर्तव्य को

नहीं है  दुष्कर जो मेरे लिए

कुछ तो नियंत्रण रखना पड़ता है

अपनी बुद्धि पर विचारों पर |

आशा

 



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14 मार्च, 2022

मेरा है अरमान यही


मधुर गीत गाने को संगीत बनाने को

समय की कोई पावंदी नहीं  होती 

पर मैं उलझी उलझी रहती हूँ

 कहीं भटक न जाऊं बेसुरी न हो जाऊं |

हंसी का पात्र बनने का

मुझे कोई शौक नहीं

संगीत हो सुर ताल से परिपूर्ण

शब्दों हो रंगीन यही रुचिकर मुझे |

गीत जब गाऊँ सभी जन सराहें मुझे

मेरे मुंह से स्वर पुष्प  झरें

मन की प्रसन्नता छलके

खुशी चहु ओर दिखे यही है प्रिय मुझे |

जाने कब पूर्णता हांसिल हो पाएगी

मेरे सपनों की दुनिया आबाद हो पाएगी

एक यही अरमान है अधूरा मेरा

कुछ और अधिक की चाह नहीं  मुझे |

करती हूँ अरदास अभ्यास प्रति दिन

प्रभु करलो स्वीकार मुझे दो चरणों में स्थान 

और शीश पर हाथ मेरे जिससे मैं भवसागर से

 तर पाऊँ पाकर तुम्हारा साथ |

आशा 


सायली छंद -३-


 

-तुम

-हो मेरे   

मीत  मन के

भूलना नहीं

कभी |

२-मुझे

रखना सदा

अपनी शरण में

 प्रभु तुम्हें

नमन |

३-जल

 है भरा  

घट छलक रहा

तुम्हारे ठुमके

लगे |

४- कभी

याद करना

उसे देख कर

मुझे भी

निर्भय

-५-पतीली 

मुंह  तक

-दधि से भरी

मुझे प्यारी

लगी

६-जंगल

भरा है 

मूक जीवों से 

अलग नहीं 

हमसे |

७-बंधा 

गहरा बंधन 

कच्ची  डोरी से 

है प्रिय 

मुझे |

आशा 


13 मार्च, 2022

सायली छंद (२)



                                             १- मेरा

तन मन 

महकाती तेरी खुशबू 

बहकाती नहीं 

मुझे |

२-छलकी 

तेरी गागर 

जल से भरी 

सर पर 

धरी |

२- नहीं

चंचल चपल 

आज की नारी 

मेरी सोच

 खरी |

३-हम

हैं हिन्दुस्तानी  

 भारत के  निवासी 

 गर्व  है 

हमें |

४-प्रभू 

तुम ने 

दिया बहुत कुछ 

नहीं सम्हाला 

मैंने |

५-कोई 

 कब तक 

 रक्षा  करेगा  तेरी 

हुई तरुणा 

सक्षम |

६-डाली 

जीवन की 

है हरी भरी 

फूलों से 

लदी |

७-कमल

होकर  अलग 

तैरता पंक पर 

रहा दूर 

उससे |

























इल्जाम


                 इल्जाम
 
मुझे न देना

खामोशी का

सहरा पहन कर |

यही खामोशी

तुम्हें महंगी पड़ेगी

जीवन के

कठिन दौर में | 

दायरा ख्यालों  का

 इतना विस्तृत 

 नहीं है

जिससे हम दौनों में 

दरार पड़ जाए

 मुझे तुम से अलग 

कर पाए |

इल्जाम लगाने 

से पहले 

ज़रा सोचना 

क्या तुम्हें मेरी 

कोई जरूरत 

नहीं है 

मुझे  भी कोई

 दरकार नहीं है |

आशा