19 मार्च, 2022

जीवन की शाम




 

जीवन की शाम कैसे मधुर हो

आज तक किसी ने बताया नहीं 

जितनी कोशिश करने की थी क्षमता 

पूरी कोशिश की मन को स्थिर रखने की |

आज तक मन को संतुलित रखा है

हर बात तुम्हारे आधीन यह भी समझा

कभी तनाव मन में न रखा

 फिर भी न जाने  क्यों मन अब बस में नहीं |

कैसे उसे समझाऊँ नियंत्रित रखूँ

 देना  शक्ति मुझे  मन कमजोर रहूँ  ना 

इस संसार से बाहर निकल 

भव सागर के बंधन तोडूं 

कर्तव्यों से मुंह न मोडूं|

आशा

17 मार्च, 2022

तृष्णा

 

                  माया, तृष्णा ,मोह ,मद

चारों नरक के द्वार

जीव फंसा बीच में 

बंद हो गया द्वार |

सोच में ऐसा उलझा

बाहर  निकल न पाया

 सोने के पिजरे से

पञ्च तत्व के  पिंजर से  |

मोह ने पीछे से जकड़ा ऐसे

तृष्णा बढी बढ़ती गई

कोई सीमा न रही उसकी  

मद हुआ सर पर सवार |

 भूलवश दरवाजा पिंजर का

 जब खुला रह गया

जीव उड़ चला पंख पसार

खुले आसमान में |

आशा

सयाली छंद -४-



 

  १-होली

आई है

संग लिए रंग

मुझे है

पसंद |

२- उड़ता

रंग गुलाल

मीठी है भंग  

खाई गुजिया

 संग |

३- प्रियतम

 इन्तजार तुम्हारा

 करते रहे हम

 रही  फीकी  

होली |

४- होली

रंगोत्सव  है

जलती  बुराइयों  का   

बैर मिटे  

 अपना  |

५- होली

आई है

मिलन के लिए

बैर नहीं  

चाहिए 

६-,उड़ा 

अवीर गुलाल 

होली आई है 

हम सब 

मिले |

७-आज  

गुलाल लगाया 

हुए मद  मस्त सब 

 भंग में 

हम  

आशा 

16 मार्च, 2022

उम्मीद


 


मुझे उम्मीद न थी

हर बात पर पक्ष मेरा लोगे

मुझ पर विश्वास करोगे 

तुम मेरे मनमीत बनोगे |

मेरी कल्पना में थी

एक तस्वीर तुम्हारी

जब जीवन के पन्नों पर उतरी

बढाया आत्मबल मेरा |

मनमीत होने का मेरे

पूरा प्रतिफल दिया तुमने

मुझे कोई दिक्कत न हुई

तुम को समझने में |

यही क्या कम है

तुम में और मुझमें 

तालमेल है गहरा इतना

तुमको मैं समझती हूँ

समझे तुम मुझे पूरी तरह |

उम्मीद  यही थी  तुमसे

अपेक्षा मेरी पूर्ण करोगे

आशा को निराशा में न बदलोगे

उम्मीद पर खरे उतरोगे |

आशा 

दामन की छाँव में



माँ तुम्हारे दामन की छांव में

जो सुकून मिलता था 

भूली नहीं हूँ अब तक

उसके लिए तरसती हूँ अब |

जब भी पुराने अपने मकान के

 सामने से गुजरती हूँ

तुम्हारी आवाज सुनाई देती है  

और तुम्हारी  छवि मेरे आसपास होती है |

मैं आज भी उन यादों से

उभर  नहीं पाती यादें बचपन की

 मुझे आज भी बारम्बार सतातीं  

क्या करूं बचपन लौट नहीं पाता |

 बचपन बीता तुम्हारे दामन की छाया में

आया योवन बचपन को विदा किया

हुई व्यस्त घर गृहस्ती में

फिर बाणप्रस्थ में कदम रखे 

तब भी यादों से दूर न हो पाई  |

 यादों से दूर होने की कल्पना तक नहीं कर सकती   

चाह है मेरी यही बीते सारा जीवन

 तुम्हारे दामन की छात्र छाया में

जन्म जन्मान्तर तक तुम ही रहो माँ मेरी |

आशा 


15 मार्च, 2022

नसीब अपना अपना

 

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नसीब अपना अपना -
जितनी जल्दी सब मिला
मेरे मन का मयूर खिला
जितने थे अरमान
सिमट कर न रहे मन में |
किसी की नजर न लगे
मेरे भाग्य पर ग्रहण न लग जाए
बिना मांगे मुझे वह सब मिला है
जिसकी न थी कभी कल्पना मुझे |
कमल का फूल खिला है
मेरे मन मंदिर के अन्दर
यहीं जाकर किसी से यह सब
मांगने का मन होता है |
मैंने ध्यान किया प्रभु का
विश्वास किया अपने भाग्य पर
बिना मांगे सब कुछ मिला
है यही नसीब अपना अपना |
आशा
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सम्मान


सम्मान मिले न मिले

 अपना कर्तव्य है प्यारा मुझे

यदि न्याय अपने कर्तव्य से न किया

मेरा मन संतप्त हो जाएगा |

परोपकारी जीवन जीने का था

 अरमां रहा बचपन से ही मुझे

अब भी है और भविष्य में  भी रहेगा

मैं अपना कर्तव्य निभाती हूँ |

पूरी शिद्दत से समर्पान भाव से

सम्मान नहीं चाहती बदले में

अपार संतुष्टि मुझको मिलाती है

कोई एहसान नहीं करती किसी पर |

प्राथमिकता देती हूँ अपने कर्तव्य को

नहीं है  दुष्कर जो मेरे लिए

कुछ तो नियंत्रण रखना पड़ता है

अपनी बुद्धि पर विचारों पर |

आशा

 



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