30 अप्रैल, 2022

राह की खोज में


 


कब तक बैठी राह निहारूं

तुम मुझे भूल गए हो  

तुम जिस मार्ग से गए थे

उस पर से ही चल कर

अपना मार्ग प्रशस्त करूं |

मैंने कितनी बार सोचा

क्यूँ न मैं ही कदम बढाऊँ

क्यूँ अपने वजूद को भूलूँ

मार्ग कितना भी कठिन क्यूँ न हो

उसी मार्ग से तुम तक पहुंचूं |

 अनेक वर्जनाएं मेरी राह रोके खड़ी है

मेरा साहस टूट गया है

लोग क्या कहेंगे ?

हर बार यही बात मेरे कदम रोकती है |

अब मुझमें इतनी शक्ति नहीं है

मैं खुद से कोई निर्णय ले पाऊँ  

या समाज के आगे झुक जाऊं |

कल्पना में जीने से कोई लाभ नहीं है

यदि अपने निर्णय खुद न ले पाई

यह जीवन अकारथ हो जाएगा |

तुम आओ या मुझे बुलाओ

अधर में न लटकाओ

या मुझे इतनी शक्ति से  भर दो

मुझे अपने पैरों पर खड़ी कर दो

मैं बिना रुके तुम तक पहुँच पाऊँ |

आशा  

संयम मन का


 


किसी की चाहत थी उसकी 

वह जब ना मिल पाई

मन ने संयम खोया 

बेचैन हुआ उसे पाने को|

 हुआ अधीर 

 और लालाईत

मुंह में पानी आया कई बार  

उस तक पहुँचने को 

ख्याल ने मन को झझकोरा |

ऐसा क्या था  विशेष उसमें

जिससे दूर न होना चाहा

संयम और धैर्य  के 

 मार्ग भी छोड़ दिए 

मन के संयम को भी दर किनारे किया |

 संयम ही एक ऐसा मार्ग बचा था 

उस तक पहुँचने का

जिसने संयम छोड़ा 

मार्ग में भटकता गया  |

उससे दूरी बढ़ती गई

मन को संताप देती गई

वह भूला संयम रखने का वादा

यही भूल कर बैठा बेचारा |

जीवन से  मात खाई 

हारे थके बेचैन गुबार से भरे मन ने 

 कही का नहीं रखा उसे  |  

आशा


29 अप्रैल, 2022

मायूस




बहुत किया सब का

पर यश न मिल पाया  

फिर भी कर्तव्य से

पीछे न हटे |

कभी मायूस न हुए 

यही खूबी तुम्हारी

सब से अलग  करती है तुम्हें

 दृढ संकल्प  बनाती है तुम्हें|

चरित्र में चार चाँद लगाती है

तुम्हें चाहे मालूम हो य न हो

तुम्हारा व्यक्तित्व निखर कर आता है

सब लोगों के सामने |

हर ओर सफलता मिले

आवश्यक नहीं खुशियाँ मिलें

जो मिलती जाती  हैं

उन्हें कोई  छीन नहीं सकता |

मायूसी से कोसों दूर रहे

 सदा मुस्कुराते रहे

यही धन संचित किया तुमने

 किसी की आशा न की |

सफल जीवन ही तुम्हारी धरोहर है

फिर मायूसी क्यों ?

क्षणभंगुर जीवन में आनंद समाया

यही क्या कम है |

28 अप्रैल, 2022

मासूम



 


भोला भाला मासूम सा चेहरा

न जाने कितने राज छिपे इसमें

पर नैन चंचल हिरनी से

करते उजागर मन के हर राज को |

जब मुस्कूराहट बाहर आना चाहती

कहीं कोई वर्जना झेलती

मन में दुबक कर रह जाती

 झलक उसकी दिखती नैनों में |

 प्यारे से दो नैना

 झुक जाते शर्मा कर 

रूमाल से नैना छिपाता 

वह भोला मासूम बालक | 

 पलकें झपक झपक जातीं मासूम की

 चाहता नहीं मन की गिरह खोलने को

 कुछ बोलने सुनने  को |

यही मासूमियत आकृष्ट करती

मुझे उस तक पहुँचाने के लिए

मिठास घुली होती उसकी बोली में

उसके अधर चूमना चाहती |

आशा  


27 अप्रैल, 2022

घर

 


एक छत के नीचे

कुछ लोगों के रहने  से

घर नहीं होता 

घर बनता है संस्कारी लोगों के एक साथ रहने से| 

 एक ही विचार के

लोग  जब एक साथ रहते

बड़े छोटे का लिहाह करते

संस्कारों से बंधे रहते रिश्तों को समझते 

सही माने में बने घर में रहते|

एक छत और चार दीवारों से

कभी घर नहीं होता

वहां रह कर भी साथ रहने वाले

अपनेपन से कोसों दूर रहें जब

उनका घर में रहना है बेकार

कभी सुख दुःख में साथ यदि न हो

तब कैसा घर और वहां रहने वाले |

सोच कर भी मन संतप्त होता है

 एक छत के नीचे रहने वाले

मिल बाँट कर खाने वाले

सुख दुःख में साथ देने वालों से ही

घर का एहसास होता |

घर चाहे कितना बढ़ा या छोटा हो

यदि प्रेम आपस में न हो  

चाहे सुख साधन हों य न हों

घर जाना जाता वहां रहने वालों से |

वहां जा कर जो सुकून मिलता है

दुनिया के किसी भाग में नहीं मिलता

मित्र भाव माता पिता का स्नेह भाई बहन का  वहीं मिल पाता जहां मेरा घर होता |

आशा

 

 

26 अप्रैल, 2022

कीमत मिट्टी की



कण कण मिट्टी का है बड़ा उपयोगी

किसी ने कभी ध्यान ही नहीं दिया

हरियाली ने किसी का ध्यान आकृष्ट किया

तभी ख्याल आया इस का |

 मिट्टी हर पल ही उपयोगी होती

चाहे जिस रूप में भी हो

 बहुआयामी होते इसके करतब

जहां उपयोग की जाती

 अपना महत्व दर्शाती |  

पूजा के लिए दीपक बनाए जाते

स्नेह से भर दीप जलाए जाते 

वे जगमगाते  घर को रौशन करते

त्यौहार नहीं मन पाते इनके बिना |

 मटका ग्रीष्म ऋतु में जल 

 भरने के काम आता

कभी अनाज भी भरा जाता इसमें 

जाने कितनी आत्माएं तृप्त करता

जब उन्हें जल प्रदान करता

मिट्टी महिमा के बखान

 जितने भी करो कम है|

मानव जीवन  है आश्रित उस पर

खेती के बिना अनाज कहां से उपजता

जब उर्वरा मिट्टी होती

तभी यह संभव हो पाता |

पञ्च तत्व से बना मानव का  

जीवन भर अपने कार्यों में व्यस्त  रहता

अंत समय आते ही

फिर मिट्टी में मिल जाता|

मिट्टी में जन्मा खेला कूदा बड़ा हुआ

फिर नियति में जो लिखा था 

उसे पा संतुष्ट हुआ

यही विधि का विधान रहा |

 मिट्टी तो मिट्टी है

गुण इसके इतने हैं अधिक   

हर पग पर मानव के साथ होती है

पर्यावरण के संरक्षण में  |

आशा

  

25 अप्रैल, 2022

ख़ारा जल समुन्दर का


 

खारा जल समुन्दर का इतना

रहा बटोही प्यासा

प्यासा आया गया भी प्यासा ही 

मन में मलाल बढाया |

सोचा यूँ ही समय बर्बाद किया

जल की एक बूँद का भी यदि

उपयोग कर लिया होता

तनिक भी दुःख न होता |

पर फिर भी सोचा

क्या लाभ इतने खारे जल का

फिर घिरा अनगिनत सवालों से

उनके उत्तरों से |

देखा कई सवाल अभी भी थे अनुत्तरित

पर मिले उत्तरों से जो संतुष्टि मिली

मेरी क्षुधा  तृप्त हो पाई

मुझे अपनी जल्दबाजी पर हँसी आई |

किसी निष्कर्ष तक पहुँचने में

जल्दबाजी किस लिए

यदि मन में धैर्य न हो

किसी को छेड़ना नहीं चाहिए |

आशा