29 जुलाई, 2022

हाइकू

 १-कलह नहीं 

सद्भाव  ही चाहिए 

यही है मांग 


२-तुम्हारा प्यार 

है एक छलावा ही 

कैसे कहती 


३-मुझे प्यार दो 

कहना है सरल 

पर न कहा 


४-छलकी आँखें 

वह हादसा  देख 

धैर्य खो गया 


५-सारे तीर्थ हैं 

विश्वास  के गढ़ ही 

हैं व्यक्तिगत 


६-राम जन्में 

सरयू नदी तीर 

अयोध्या में 


७-पैर पखारे 

पवित्र पावन हैं 

पद राम के 


८- नमन प्रभु 

राम  और सीता  को 

मिलती शान्ति 

आशा 

प्रकृति का गीत


                                                  मधुर धुन पक्षियों की

 जब भी कानों में पड़ती

मन में मिठास घुलती मधुर स्वरों की

मन नर्तन करता मयूर सा |

जैसे ही भोर होती

कलरव उनका सुनाई देता अम्बर में

आसमान में उड़ते पंख फैला   

अपनी उपस्थिति दर्ज कराते |

स्वर लहरी इतनी मधुर होती

आकर्षित करती अपनी ओर

खुशनुमा माहौल होता प्रकृति का

मन करता कुछ देर और ठहरने को |

घर जाने का मन न होता

बगिया में रुक हरियाली का मजा उठाता

 आनंद में खो जाना चाहता

भूल जाता कितने काम करने को पड़े हैं |

जब यह ख्याल आता जल्दी से कदम उठाता

अपने आशियाने की ओर चल देता

अपने से वादा लेता समय का महत्व बताता   

 कल जल्दी ही यहाँ पहुंचना है समझाता |

आशा   

 

 

 

27 जुलाई, 2022

वर्षा ऋतु का आगमन

 


 जल की नन्हीं बूंदे आतीं

 काली घटाएं आपस में टकरातीं

व्योम में बिजली चमकती जब टकराती  

वर्षा ऋतु आगमन का होता आगाज  |  

 बादल काले कजरारे उमढ घुमढ आते

 आपस में टकराते गरजते बरसते 

  वर्षा की उम्मीद जगाते  

 खेतों में नन्हें पौधे अंकुरित होते |

 होती जब मखमली हरियाली   

व्योम में धुंधलका छा जाता

जब भी बादल समूह में आते

कभी काले कभी भूरे दीखते

अनूठा मनमोहक नजारा होता |

जब भी वे आपस में टकराते बादल  

तीव्र गर्जना होती 

दिल दहल जाते सब के  

सोते बच्चे चौंक कर उठते |

पर रिमझिम वारिश होते ही   

वर्षा में भीगने को लालाइत होते

सारी सीमाएं तोड़ कर

भागते आंगन की ओर |

यही तो बचपन है

प्रकृति में जीने का

 भीगने खेलने नहाने का

आनंद है कुछ और |

आशा 

आशा 

26 जुलाई, 2022

मुझे शिकायत है यह कैसे जानोंगे

 


                                                             हर बात पर मुझसे बहस करना 

नीचा दिखाने से बाज न आना 

जब आदत ही बनाली तुमने 

 तुम कैसे जानोगे मुझे कैसे पहचानोंगे |

तुमको   प्यार से बोलना न आया 

मिठास शब्दों में घोलना न आया 

कभी कुछ नया  सीखा ही नहीं तुमने 

 मेरी शिकायत  को कैसे समझोगे |

 मैंने ही पहल की सुलह सफाई की 

आगे कदम बढाए मैंने पर तुम न जान पाए 

मेरे मन में क्या है मैं क्या सोच रही हूँ 

ना समझे ना ही कोशिश की मुझे समझने की |

यही तो शिकायत है मेरी 

तुमने  मुझ पर ध्यान ही  नहीं दिया 

 किसी कार्य के योग्य  न समझा 

जब भी आगे बढ़ना चाहा 

पीछे से पैरों को  खीच लिया |

कभी गिरी गिर कर न सम्हली 

मुझ में  हीन भाव उत्पन्न हुआ 

मैं क्या करती कैसे शिकायत करती 

तुमने  मुझे अपना न   समझा  |

मुझे शिकायत है यही तुमसे 

 पलट कर ना   देखा कभी  तुमने 

मैं भी हूँ पीछे तुम्हारे |

तुम्हारा हक़ है मुझ पर

 यही बहुत है मेरे लिए 

अपना  हक़ मैं भूली नहीं

जीना चाहती हूँ अधिकार से |

आशा 



25 जुलाई, 2022

मैंने यथार्थ को जिया है


                                                             मैंने जिन्दगी को जिया है 

यथार्थ को भोगा है 

 कुछ नया नहीं किया है 

अब न पूंछना मैंने क्या किया है |

जब   छोटी   थी घर घर  खेलती थी 

रोटी भाजी  बनाती थी

 मिठाई भी बना लेती थी

खेलती खाती मित्रों को बुलाती |

रेती का  घर बनाती थी 

आगे उसमें बाग़ लगाती 

पर जब आपस में झगड़ते 

 घर को तोड़ फोड़ देते थे |

सारे पौधे उखाड़ देते थे 

फिर भी नहीं समझते थे 

नुक्सान  किसका हुआ 

किसकी महनत बेकार गई |

पर  नहीं समझी  थी अब भी नहीं समझी 

 यही समझ यदि पहले आती 

बना बनाया  घर न टूटता 

 हानि  न झेलना पड़ती  |

यही सब   देखा  है  वर्तमान में 

  शहरों गावों में  यहाँ वहां 

अपने ही  देश में  

 क्रोधित होने पर तोड़फोड़ होने लगती है |

 आगजनी तो है आम बात 

गुत्थम गुत्था भी होती है 

 जब बात बिगड़ती है

 मार काट भी मच जाती है |

हानि  किसकी  होगी

 यही समझ से परे है  

आम जनता को  ही

हानि पहुँचती है|

जान माल की हानि को 

खुद ही सहन करना होता है 

 आए दिन  होली जलती वाहनों की 

कितनी मुश्किल से घर बसाया था |

वह आंसू भरी आँखों से

 देखता ही रह जाता है 

अपनी उजड़ती दुनिया को 

पर शिकायत किससे  करे |

मैंने भी यही सब देखा है भोगा है 

जैसा देखा अनुकरण किया है 

है यही  एक उदाहरण

जिसे  मैंने यथार्थ में जिया है |

आशा 


21 जुलाई, 2022

मैं क्या करती


 


कभी कभी ख्यालों में आना

फिर कहीं गुम हो जाना

रात के अन्धकार में

मन को भाता तुम्हारे 

मैं क्या करती |

खोजे से भीं न  मिलना

करता है परेशान मुझे

कहीं जाने नहीं देता

परछाई सा  चिपका रहता

मैं क्या करती |

 कभी मेरे  स्वप्नों में आना

वहां आने के लिए

कोई  बहाना बनाना

करता है बाध्य तुम्हें

मैं क्या करती |

मन चाही बातें मनवाना

वहां अकेले ही बने रहना

किसी से बहस नहीं करना

 सब पर हुकूमत चलाना

  अच्छा लगता है तुम्हें

 मैं क्या करती |

मुझे प्यार है तुमसे

मन भाग रहा है वहां

नहीं मंजूर मुझे

 किसी और का वजूद 

नहीं होता सहन मुझे 

मैं क्या करती | 

आशा 

20 जुलाई, 2022

मैऔर तेरा ख्याल


ख्याल तेरा मेरे  मन को छू गया 

उलझा रहा मैं  तुझ में ही 

 कितने ही जतन  किये

 बड़ी कठिनाई झेली |

 न भूल पाया  तुझको मैं 

क्षण भर  के लिए भी 

तू मुझे विशिष्ट लगी 

मन के लिए उपयुक्त लगी |

यही विशेषता तेरी  मजबूरी बनी  मेरी 

की कोशिश भरसक  पाने की तुझे 

अपने  दिल की रानी बनाने की ललक 

फिर भी शेष रही मेरी |

तूने जो आदर सम्मान  दिया मुझे

 अपने मन को खोल न पाया मैं 

आहिस्ता से  नजरिया बदला मैंने 

उसकी भनक न लगने दी किसी को  |

बहुत बड़े कदाचार  से बचाया मुझे 

किया मैंने  पश्च्याताप  दिल से 

अब  कोई शिकायत नहीं होगी 

किसी को भी  मुझसे |

मैंने सत्य का मार्ग अपनाया

  आत्म शोधन किया मैंने  

भूले से भी उस राह पर न

 पग रखने की कसम खाई  मैंने |

जिसने मुझे बहकाया था 

पहले  अपना मनोबल भी खो दिया था 

पर  दृढ विश्वास पर अडिग रहा

 अब पहले  सी अस्थिरता नहीं मन में |

मुझे विश्वास है अपने पर 

किसी सलाह  की आवश्यकता  नहीं 

मुझे क्या करना है स्पष्ट है अपनी  आँखों के समक्ष 

उसी पर अडिग  खड़ा हूँ  |

आशा