16 सितंबर, 2022

सच्चा मोती

 सागर में सीपी 

सीपी में मोती 

मोती में आभा  अद्भुद 

छिपी अन्दर है |

है नायाब मोती 

बहुत मुश्किल से

 मिलता है

 इसकी कांति  कभी

 कम नहीं होती |

 स्त्री के चेहरे पर तेज  

की तुलना की जाती 

 इसके  तेज से अक्सर |

उसकी पवित्रता 

तोली जाती है 

मोती की चमक  से |

सच्चा मोती होता 

 वेशकीमती अनमोल 

आसानी से उपलब्ध 

नहीं होता 

उसकी  चमक न 

  फीकी होती 

तभी तुलना होती 

  उसकी आभा की स्त्रियों के 

मुख  मंडल की आभा से  |

आशा सक्सेना 

14 सितंबर, 2022

असफल निर्णय

 

 

 

क्या कहा जाए ?

कैसे समझाया जाए ?

किसे समझाया जाए ?

आज तक निर्धारण न हुआ

जब भी सोच  विचार किया  

किसी निर्धारण पर

पहुँचने की कोशिश की

असफलता ही हाथ लगी |

किसी निष्कर्ष पर पहुँचाने से पहले ही

वाद विवाद की स्थिति बनी

यही बात आपस में उलझ कर रह गई

कोई निष्कर्ष न निकल पाया |

जिसने भी कोशिश की  थी

मन मसोस कर रह गया

पर अपनी हार सहन न कर पाया

कोशिश करने से पीछे नहीं हटा 

फिर से प्रयत्न किया प्रारम्भ |

आशा सक्सेना

13 सितंबर, 2022

मेरा उद्देश्य

 

लिए चौमुख दियना हाथ में

दिया ढका आँचल से

बचाया उसे हलकी बयार से

  चली साथ में रौशन हुआ समस्त मार्ग 

  आवश्यक नहीं कोई 

 अन्य रौशनी के स्रोत का  

दिग दिगंत चमका देदीप्तिमान हुआ

आगे जाने का मार्ग प्रशस्त हुआ

फिर क्यों पलट कर पीछे देखूं  |

आगे बढ़ने की चाह में

कोई नहीं व्यब्धान चाहिए

 कोई बाधा उत्पन्न हो यदि उसे दूर हटाना ही है ध्येय मेरे जीवन का

 कभी पीछे न हटने की कसम खाई है |

 जब जीवन के उद्देश्य में सफल रही   

यही होगी पूर्ण सफलता मेरी

मुझे हार मंजूर नहीं

 दिल मेरा टूट जाएगा

फिर जीवंत न हो पाएगा |

एक यही चाह मन में रह जाएगी

कि इस छोटे से 

जीवन काल  में

आगे बढूँ बढ़ती चलूँ

 बिना किसी बाधा के

अपने लक्ष्य तक पहुंचूं

 अपना मंतव्य पूर्ण करूं |

है यही अरमान मेरा 

किसी बाधा से नहीं डरूं

जो भी बीच में आए

 उसे वही समाप्त करूं

 मार्ग अपना प्रशस्त करूं |

कभी हार न मानूं किसी से

अपने ही मार्ग पर चलती चलूँ

ना किसी का अधिकार छीनूँ

ना उसे अपना अधिकार का

 अधिग्रहण करने दूं|

 

12 सितंबर, 2022

हिन्दी की विशेषता

 है हिन्दी हमारी मातृभाषा 

हमें है  प्यार उससे  

कारण नहीं समझ से बाहर 

लिपि है  बहुत  सरल उसकी  |

कितनी भाषाएँ मिलीं है उससे 

 जल में शक्कर मिली हो जैसे |

उन शब्दों   को यदि  खोजा जाए 

वे स्पष्ट नहीं दिखते अलग से 

अपना अस्तित्व  ही खो देते 

 दूध में  शक्कर जैसे |

सरल है   भाषा विज्ञान और व्याकरण   

भिन्न हैं विधाएं लेखन की 

बहुत सम्रद्ध है साहित्य उसका 

अथाह भण्डार भरा पुस्तकों से  |

मन चाहे जितना  अध्यन करो 

मन अतृप्त ही रहता 

तभी कहा जाता है

 हिन्दी है माथे की बिंदिया 

बढ़ता सौंदर्य साहित्य का इससे |

 अन्य भाषा के शब्दों से मिलकर 

 एक सामान व्यबहार होता है यहाँ 

सभी भाषाओं के शब्दों से 

जब मिल जाते  हैं आपस में 

कोई भेद नहीं होता उनसे |

है यही विशेषता मेरी मातृभाषा की 

तभी है प्यारी मुझे हिन्दी दिल से |

आशा सक्सेना 




क्षणिकाएं

 १-ओ आज के प्यारे मौसम 

तुम्हारे इन्तजार नें आँखे तरसी 

 किस कारण नहीं बताया तुमने 

बिना बात इन्तजार में उलझाया तुमने |


२-कभी तेज बारिश कभी सूखा मौसम 

इतना अटपटा व्यवहार किस लिए 

किसने सिखाया तुम्हें ऐसा किसलिए 

अपने अभाव में आम जन को तरसाया तुमने |

३-

जल के अभाव् में कितना कष्ट हुआ होगा  

यह तुम कैसे जानोंगे तुम ठहरे पाषाण ह्रदय 

जो दुर्गति हुई सब की उसे कैसे पहचानोंगे 

तुम्हें नहीं लगाव किसी से हमने तुम्हें पहचान लिया

 है अब क्या फ़ायदा एक ही  बात दोहराने का  

हमने सब भाग्य पर छोड़ दिया है |


आशा सक्सेना 

10 सितंबर, 2022

हाइकू

 


१-यही है प्यास

मेरे मन की आस 

मुझे खुशी है

२-दिल दीवाना

नहीं  बेगाना तेरा

मुझ सा नहीं

३- राम भरोसे

सब छोड़ दिया है  

हुई सुखी मैं

४-हुए विलीन

पञ्च तत्व में यहीं

दुनिया छोड़ी

५-तुम ने छोड़ा

मोह दीन  दुनिया

हुए स्वतंत्र

६-न मोह माया

ना ही कोई बंधन

जीवन मुक्त

७-यादों  में रहो

 ये बंधन जन्मों का 

तुम्हें नमन 

आशा सक्सेना 


09 सितंबर, 2022

तुम दूर हुए मुझसे

 

 

 जब बांह थामी थी मेरी

 वादा किया था साथ निभाने का 

जन्म जन्मान्तर का साथ अधूरा क्यों छोड़ा?

आशा न  थी मध्य मार्ग में  बिछुड़ने की 

उस वादे का क्या जो जन्म जन्मान्तर तक

 साथ निभाने का किया था

जब किया वादा सात वचनों का  

 मुझे अधर में छोड़ा और विदा हुए 

यह भी न सोचा कि  मेरा क्या होगा `

 जीवन की कठिन डगर एक साथ पार की

जब सारी जुम्मेदारी मिलकर झेली 

फिर जीवन से क्यूँ घबराए

मुझे भी तो संबल की आवश्यकता थी तुम्हारी  

यह तुम कैसे भूले न कुछ कहा न सुना 

मेरे  मन को झटका लगा यह क्यूं भूले 

अकेली  मुझे  मझधार में छोड़ दिया 

जाते तब पता अपना तो बता जाते 

मैं भी तुम्हारे पीछे आ जाती

बाधाओं से न घबराती  


आशा लता सक्सेना

                                                                                                 

 

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