15 अक्तूबर, 2022

तुम कैसे भूले


 

जब बांह थामीं थी मेरी

वादा किया था साथ निभाने का

जन्म जन्मान्तर तक 

मध्य मार्ग में  क्यूं छोड़ा |

आशा न की थी वादा  

जो साथ निभाने का था

 उस वादे का क्या

जो सात जन्मों तक

 निभाने का था |

उसका क्या

यह तो न्याय नहीं

मझधार में मुझे छोड़ा

कैसे कच्चे धागों को

अधर में छोड़ा

यह भी न सोचा

मेरा अब क्या होगा |

 जब जीवन की कठिन डगर

एक साथ पार की

जब सारी जिम्मेंदारी

एक साथ मिल कर पार की

फिर जीवन से क्यों घबराए

मुझे भी तुम्हारे संबल की तो

आवश्य्कता थी तुम्हारी

यह तुम कैसे भूले |

आशा सक्सेना 

09 अक्तूबर, 2022

शिकायत

 

किसी से किसी की

शिकायत न कीजिए

मन असंतुलित होजाएगा

यही हाल यदि रहा

जीवन बेरंग होजाएगा |

कहा सुना भूल जाइए

मन का मेल यदि धुल गया

जीवन में शान्ति का

आगमन होगा |

यही है सबसे आवश्यक  

सुखमय जीवन के लिए

जीवन हो सुखद जान लीजिये

यही है आवश्यक

क्षणिक  जीवन के लिए |

कब नयन बंद हो जाए

कोई नहीं जानता

पहले से सतर्क रहिये

खुद कोई गलती न कीजिए |

यदि अपनी सीमा छोड़ी

जीवन भर पछताने के सिवाय

कुछ भी हांसिल न होगा

हाथ मलते रह जाओगे |

आशा सक्सेना

06 अक्तूबर, 2022

आज के बच्चे

 आज के बच्चे खेल रहे मोवाइल पर 

दिनरात पीछे पड़े रहते उसके 

कुछ नया जानना नहीं चाहते 

 रावण दहन तक नहीं |

वे नहीं चाहते कुछ अधिक जानना 

किसी त्यौहार के बारे में

 नाही जानना चाहते 

कारण त्यौहार  मनाने का |

समाज में बड़े स्टेटस वाले 

शान शौकत से रहने वाले

 इसे तुच्छ समझते 

कहते इन सब की जानकारी से

समय यूँ ही बर्वाद होगा  क्या लाभ होगा 

व्यर्थ की जानकारी से |

धर्म में उनकी कोई रुची नहीं है 

हैं वे पाश्चात्य सभ्यता के अनुरागी 

उन्हें नहीं भारत की  सभ्यता से लगाव 

भाषा तक पसंद नहीं  हिन्दी उनको 

|वे अंधानुकरण करते है अंग्रेजों की |

मन को बहुत कष्ट पहुंचता है यही सब देख 

मन नहीं होता उनसे कुछ कहने सुनने का  

वे डूबे इतना आधुनिकता में 

भूल गए अपना धरातल अपनी संस्कृति

 बस हाय हलो ही याद रही 

प्रारम्भ होता सुबह  हाय पापा हाय मम्मा से 

कितावों में रख करअवांछित कहानियां  पढ़ते 

जताते कितना पढ़ रहे हैं |

आशा सक्सेना 

05 अक्तूबर, 2022

दहन किसका होगा


 

दहन किसका होगा

क्या  दस शीश का ?

या सामाजिक कुरीतियों का

जो अब तक समाप्त  न हो पाईं ?

रावण दहन की रीत में

हम अपने  आप से हर वर्ष

कई वादे  करते खुद से

कुरीतियां  त्यागने  के  लिए |

पर वादा पूरा करने में 

सफल न हो पाते

मन में असंतोष और बढा लेते

पर वादे को पूरा न कर पाते |

यही कमी है खुद में

तब कौन हमारा साथ देगा 

 तब कौन हमारे  साथ चलेगा |

सब चाहते  सच्चे मित्र का साथ 

जो खुद हो अपने वादे का पक्का

वख्त पर आकर खडा हो

गलत को नजरअंदाज न करे

गलती बताए |

04 अक्तूबर, 2022

गली गली में रावण रहते


                                                      

                                                                    जाने कितने रावण 

गली गली में घूंम रहे 

इनका कोई अंत नहीं 

 हुआ अब  तक |

सडकों पर घूमने वाले 

रावण में कोई सुधार नहीं

 हुआ अब  तक 

सब को हैरानी होती है |

हर वर्ष जलाया जाता उस को 

 फिर से  जी उठता है

शायद गया श्राद्ध  

न किया गया हो उसका | 
हर  बार जी उठता है 

कलियुग का आभास कराता है 

कहीं शांति नहीं हो पाती यहाँ वहां 

 और भ्रष्टाचार की कमीं नहीं |

हम भी उसी गली में रहते 

पर दूरी बनाए रखते 

 किसी से नहीं मिलते जुलते 

किसी का अन्धानुकरण नहीं करते |

अपने आप में  व्यस्त रहते 

जाने कब छुटकारा मिलेगा 

इस कलियुग के प्रपंचों से 

मुक्ति होगी या नहीं 

किसको पता |

आशा सक्सेना 


03 अक्तूबर, 2022

किससे करूं शिकायत


 ना किसी से कुछ चाहा 

ना किया अलगाव  ही 

सब से समता का भाव रखा 

पर सुनी सब की करी मन की |

कभी सोचा न था लोग 

कहेंगे कटू भाषी मुझे 

मन को बड़ा झटका लगा 

मैंने आत्म मंथन किया |

सोचा विचारा कहाँ कमीं 

रही  स्वभाव में मेरे 

 कोई सही उत्तर न मिल पाया |

जिसदिन मन मेरा रहा शांत 

फिर से उसी प्रश्न ने दिया झटका मुझे 

फिर सोचा शायद मुझमें ही 

कहीं कमीं थी तभी मुझसे 

किसी को लगाव न रहा मुझसे |

किसीने कहा मगरूर मुझे 

किसी ने कहा बहुत सर उठाया है 

पर किसी ने न समझाना चाह 

मझ से शिकायत है क्या ?

 उस प्रश्न का उत्तर

 न किसी ने सुझाया मुझे

मैं किससे सलाल लूं या

 किस से शिकायत करूं |

                                                            प्रश्न बार बार मुझे उलझाए रहा

                                                                    पर कोई हल न निकला  

                                                                नाही कोई मेरी मदद करता                                                                                                   न कभी आएगा  मुझे समझाने |


                                                                        आशा सक्सेना 



  





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01 अक्तूबर, 2022

संतुष्टि मन की

 










क्या मुझसे ही मनावारे करवाओगे 
क्या कोई और न मिला तुम्हें मेरी जगह 

मुझे  सताने के सिवाय मुझे  रुलाने के लिए 

मैंने सोचा न था तुम्हारा व्यबहार

 ऐसा भी हो सकता है  |

पहले किसी के संपर्क में

 आयी न थी  तुम्हारे सिवाय 

तुमसा स्वभाव  किसी का भी न देखा

 चेहरा दोरंगा देख न  पाई 

जब पहली बार  मिली 

मेरा  मन उत्फुल हुआ |

अब सोचती हूँ

तुम्हारा चहरे  का ऐसा  भाव 

  किसी का न देखा

 मन शुब्ध हुआ |


ऎसी भी क्या बात हुई 
 मुझसे दूरी बढ़ती गई  

मन चाही रंगों की तस्वीर मेरी अधूरी रही 

पर फिर सोचा मन को कुछ

  संतुष्टि मिली यही क्या कम है 

जो मिला उसी में संतुष्ट होना चाहिए |

कोई सम्पूर्ण नहीं होता

 इस याद को भूलना न चाहिए

याद करो  अपने आपमें भी 

कुछ तो कमी रही होगी 

पहले खुद को देखो फिर

 किसी से शिकायत करो 

अधिक अपेक्षा भी रखना उचित न

 जो जैसा है उसी जैसा होन का 

प्रयत्न होना चाहिए |


आशा सक्सेना