08 नवंबर, 2022

हाइकू

 

हरी धरती

नीला है आसमान 

प्रकृति एक

 

किसी ख्याल में

डूबना उतरना

  ठीक नहीं है

 

 

मन में बसा 

राम है  मंदिर के  

 कण कण में

 

किसने जपा

प्यारा सा  राम नाम

मन में बसा 

 

भारत वर्ष  

हमारा अपना है

यही   अपेक्षा

 

 आशा सक्सेना

07 नवंबर, 2022

कब तक मुझसे जुदा रहोगे

 कब तक मुझसे जुदा रहोगे 

मैंने जब से स्वीकारा तुम्हें 

हर  दिन को गिन गिन कर काटा 

कभी न सोचा क्या हुआ मुझे |

  मेरी लगन है  लगी जब तुमसे 

 पर प्रति दिन रहा इन्तजार  तुम्हारा  

मैंने इसे ही अपना कर्तव्य समझा 

यही प्राथमिकता रही  मेरे लिए भी 

 तुमने  जिन आवश्यक कार्यों को पूर्ण करने का 

  मैंने भी उसका ही बीड़ा  उठाया 

वही रहा  मेरा भी उद्देश्य  पर दूसरे नंबर पर    |

अपने दाइत्व को पूर्ण करने का 

जो  जुनून सर चढ़ बोला किसी ने कहा 

 पहले अपने दाइत्व पूर्ण करो 

फिर अपने मन को दो इजाजत 

यहाँ वहां विचरण करने की |

क्या यह नहीं हो सकता 

                         हम दोनो भी मिल जुल कर                           

क्या यह होगा संभव 

\तुम्हारे कर्तव्य  को पूर्ण करें 

कब तक रहोगे दूर मुझसे 

मुझको समझने की कोशिश करोगे 

तुमने मुझे अपना समझा ही नहीं 

प्यार का दिखावा खूब किया |

मन को ठेस लगी 

तुम्हारा यह दुहरा रूप देख कर 

क्या तुम को मेरा  सान्निध्य पसंद  नहीं किया  

या कोई जरूरी कार्य तुम्हें वहां बांधे रखता  |

 आखिर कब तक जुदा रहोगे |

आशा सक्सेना 


06 नवंबर, 2022

साहित्य के सागर में

 


                 साहित्य के गहरे सागर में

जब भी कदम बढाए आगे

किसी न किसी उर्मी ने

 सामना किया रोकना चाहा |

पहले तो भयभीत हुए

धीरज रखा सावधान हुए

फिर भी नहीं अनजान

सागर की गहराई से |

उस नई  विधा को छूने की

कितनी बार कोशिश भी की

पर परिपक्व न हो पाए

उसका चेक भुनाने में |

अब मन बेलगाम हुआ

फिर से भागा उसके पीछे

उस को अपनाने की कोशिश में

घबराया नहीं धैर्यवान रहा |

अब तो यह गलत फहमीं भी दूर हुई

कि हम सब कर सकते है

इतना सोच आगे बढ़ा कि

मन को बड़ा  सुकून मिला  |

फिरऔर भी कोशिश करते रहे

और सफल हुए इस परीक्षा  में भी  

फिर किसी अन्य विधा को अपनाया

उस में भी खुद को सबसे आगे पाया |

मन में प्रसन्नता की सीमा न रही

हर्षित हुए अंतर मन से

सराबोर हुए साहित्य के सागर में

 श्रोताओं की ओर से प्रशंसा मिली|

जिसकी खोज में डूबते  उतराते  गए  रहे सरोवर की गहराई में

 साथ मिला मछलियों और जलचरों का

तारीफों के इतने पुल बंधे

 कि खुशियों में डूबते गए |  

05 नवंबर, 2022

क्या तुमने मुझे याद किया


 

क्या तुमने कभी मुझे याद किया

भूले से प्यार  का दिखावा किया

यदि हाँ तो कब किया कितना किया

 किस के मार्ग दर्शन में किया |

क्या है एहमियत मेरी तुम्हारी निगाहों में

या  थोपा गया रिश्ता है मेरा तुम्हारा आपस में 

या तुमने कभी मुझे प्यार से चाहा है मुझे

या कहने भर से सतही रिश्ता जोड़ा है मुझसे 

या  किसी के कहने से यह बंधन स्वीकारा है   

मुझे यह रिश्ता नहीं भाता ना ही आकृष्ट करता |

  जीवन में कितने ही सम्बन्ध गहरे नहीं होते  

 मात्र दिखावा होते उनमें कोई सत्यता नहीं होती  

चाहत भी सतही होती जिसे देख नहीं पाते

केवल महसूस कर पाते जब समाज में रहते |

तब मन को बड़ा कष्ट होता मन विचलित होता

एकांतवास का इच्छुक होता जीवन में शान्ति चाहता

पहले जैसा जीवन चाहता

 जब भी रात होती  फिर  दिन होता

फिर  चिड़ियों की चहचाहाहट होती  |

कब सूरज की ऊष्मा हमारी देह को छू जाती 

उसका अद्भुद एहसास होता जीने की तमन्ना जगाता   

मन उत्फुल्ल हो गुनगुनाता सूर्य रश्मियों से खेलता था

अपने नैसर्गिक सौन्दर्य को बरकरार रखता था |

आशा सक्सेना 

04 नवंबर, 2022

जीवन का कटु सत्य


जब झांक कर देखा बीते कल  में

 पाया जीवन है दुःखों भरी कठिन राह   

कहाँ पहुँचने की तमन्ना थी राह कठिन

यह कभी न सोचा अपनी ही वाह्वाई चाही |

यह भी भूलीं आगे बढ़ने के लिए

किसने साथ दिया था तुम्हारा  

शायद ही कोई पल ऐसा हो

जब कोई आगे बढ़ने में बाधक हुआ हो |

जब भी पलट कर झांकोगी विगत में

सोचोगी महसूस करोगी

जानोंगी तुम कहाँ गलत थीं  

पर समय तब तक बीत गया होगा |

बापिस लौट कर न आएगा

तब मन को ठेस लगेगी

होगी बहुत अशांति तब 

खुशहाल जीवन जीना कठिन होगा |

तब तुम्हें एहसास होगा

 किसके बहकावें में आईं

तुम कहाँ गलत थीं

 आसपास जब  देखोगी

 तब तक समय का चक्र

 आगे बढ़ चुका होगा

तुम हाथ मलती रह जाओगी  |

तुम्हारे मन में पछतावा होगा

 उस काँटों की राह पर चल कर

उस मार्ग पर न चल पाओगी 

जिसे चुना तुमने हमने 

अब सारी जिम्मेदारी किस पर है |

जीवन है काटों की विरासत पर चलना

जब कष्ट पहुंचे धबराना पीछे पलटना 

हर दिन सुखदायक नहीं होता

 यह तुम जानती हो

दुःख की डाली पर कभी

 चंद दिन ही होते सुखद   

यही सत्य जो मन को 

अच्छा न लगता  |

आशा सक्सेना  

03 नवंबर, 2022

मेरे ख्याल से

 

तुम्हारे सारे सपने बेमानी हुए

जब भी झाँका तुमने अपने विगत में

जब  झूट या सच से हाथ मिलाया

अपने को इन प्रश्नों में उलझा पाया |

खुद न सोच सके इनका हश्र क्या होगा

इनमें फँस कर क्या होगा

कभी खुद पर नाराज हुए और

 तल्खी आई खुद के ही व्यवहार में |

यह अनिश्चितता तुम्हें सुख से सोने न देती

नाही कुछ अच्छा होने देती

तुम घिरे रहते इस झंजावात में

पार न हो पाते इन सब की उलझनों से |

तुमने क्या सोचा क्या चाहा

जब तुम ही न निश्चित कर पाए

कौन करेगा कोशिश तुम्हारे पास आने की

तुम्हें जज्बातों से बाहर निकालने की |

मेरे ख्याल से तुम हुए अब लाइलाज

किसी भी डाक्टर के बस के नहीं

यदि खुद को न सम्हाला अब भी

नतीजा  होगा घातक तुम्हारे लिए |

आशा सक्सेना


ख्याल मेरा अपना

 


जीवन में सुख की छाया 

तो नाम मात्र को देखने को मिलती है

 पर दुखों का अम्बार लगा रहता है

इस अम्बार से सुख को खोजना

 बहुत कष्ट कर होता है

  यदि उसे खोजने का सूत्र 

यदि मैं  पाऊँ बहुत सफलता पाकर  

जहां तक मैंने सुना है

 कोई कार्य असंभव नहीं होता |

असफलता ही सफलता की जननी है |

कभी तो सफलता हासिल होगी 

यदि बार बार प्रयत्न करेंगे पर हार नहीं मानेगे  |

अतः मैंने असफल हो कर भी 

अपने कदम पीछे न हटाए

 आखिर में सफलता को छू पाया |

मुझे अपार प्रसन्नता हुई 

उस सफलता की ऊंचाई को छू कर |

आशा सक्सेना