24 नवंबर, 2022
जंगल में मंगल
प्रगति मार्ग अवरुद्ध हुआ
सब ने वही किया
जो मैंने करना चाहा
किसी को टोका न गया मेरे
सिवाय
यही कारण था मेरी प्रगति के
अवरोध का |
जब भी मेरा उत्साह बढ़ा
घर के लोगों ने प्रोत्साहित
किया
किसी से तुलना नहीं की मेरी
बाहर से ही टोका टोकी की गई
थी |
आज में जिस स्थान पर खड़ा हूँ
अपने गुणों से ही वह योग्यता पाई है
पर किसी को तब भी सहन न हुआ
और मुझे अवमानना सहनी पड़ी |
मैंने जो हांसिल किया अपनी
लगन से ही किया
इसमें हूँ पूर्ण संतुष्ट मैं
अपनी आगे बढ़ने की चाह से
नहीं दूर हूँ मैं
मुझे संतुष्टि मिली है अपनी सफलता से |
क्या हुआ पूरी सफलता न मिल
पाई
अब डोर मिल गई है जिसका
सहारा लिए हूँ
जब भी मेरी पहुँच गंतव्य तक
होगी
मेरा जीवन सफल हो जाएगा |
आशा सक्सेना
23 नवंबर, 2022
आज भोर का तारा टूटा
आज भोर का तारा टूटा
सुबह का स्वप्न भी देखा
किस बात पर ध्यान दूं
अपने को कैसे दूं सांत्वना
|
कोई कार्य तो ऐसा हो कि
मन में शंका न हो पाए
सब कुछ आसानी से हो
जीवन आगे बढ़ता जाए |
क्यों मेरे मन में हो शंका ?
जीवन जितना बीता
कोई कठिनाई तो नहीं आई
अबतक जिस का सहारा मिला
मैं क्यूँ न जान पाई |
क्या यही अज्ञानता हुई मेरी
मेरे लिए सोच का कारण बनी
जितनी उस से दूरी बनाने की
कोशिश की
वह मेरे पास खिचती आती गई |
मैं खुद को और उसको समझ न
पाया
न जाने क्यूँ खुद को उसके नजदीक पाया
यही हाल कैसे हुआ मेरा
न सोचा न ही जान पाया |
आशा सक्सेना
बंधन है किसका
आज तक कोई बंधन तो नहीं तोड़ा
किसी दिल ने महसूस किया हो या नहीं
पर मैंने बहुत गहराई से
इस बात को दिल पर लिया है |
किसी ने न स्वीकारा
जितना मन पर भार हुआ
मेरी साधना में कमीं रही या
जीवन जीना न आया मुझे |
हर पल न अस्वीकार किया मुझे
कभी किसी की इच्छा पूर्ण न हो पाई
मन ने यह स्वीकार न किया
अपनी बात पर ही अड़ा रहा |
जब भी खुद में परिवर्तन चाहा
कहीं से अहम् ने सर उठाया
अपने को सर्व श्रेष्ठ माना
किसी के सामने नत मस्तक न हुआ |
फिर भी कोशिश की निरंतर
सफलता की देखी हलकी सी झलक
मन फिर अभिमान से भरा
यहीं मैंने खाई मात |
तब ईश्वर के चरण पकड़े
अपनी भूलों पर पछताई
जानती हूँ कितना सुधार है आवश्यक
पर किससे सीखूं सलाह मानूं |
अभी तक कोशिश पूरी न हो पाई
पर मैंने भी हार न मानी
प्रयत्न करती रही अनवरत
हार कर भी साहस न छोड़ा |
मेरी इच्छा शक्ति भी हुई प्रवल
यही बात मेरे मन को भाई
कभी मैं भी सर उठाकर चल
पाऊँगी
इसी बात का संबल मुझ को मिला है |
जब भी मुझमें आत्म शक्ति
जाग्रत होगी
समर्पण की मुझ में कमीं न होगी
यही वे पल होंगे जिनमें मैं
खुद का जीवन जी पाऊंगी |
आशा सक्सेना
22 नवंबर, 2022
झरना एक चित्रकार
एक दिन एक चित्रकार घर में रहते रहते बहुत बोर हो रहा था |उसने सोचा क्यूँ न मैं जंगल में जाऊं और ऊपर जा कर झरने के पास बैठूं वही से इस झरने की रंगीन स्केच बनाऊँ |धीरे से उसने अपनी मम्मीं से पूंछा वहां जाने के लिए |झरना घर से अधिक दूर नहीं था |मम्मीं ने हिदायतें दे कर जाने की इजाजत दे दी | उसने अपना सामान संचित कर जूते पहन कर झरने के उद्गम स्थल पर जाने की तैयारी करली और बड़े उत्साह से खाने के लिए थोड़ा नाश्ता ले लिया और प्रस्थान किया |
थोड़ी चढ़ाई के बाद कुछ समय विश्राम किया और फिर से चलने को तैयार हुआ |लगभग आधे घंटे के बाद ऊपर पहुंचा |उस समय सूर्य की रौशनी झरने में दिखाई पड़ रही थी |रश्मियाँ पानी में आपस में खेल रहीं थीं |नजारा बहुत सुन्दर दिख रहा था |उसने अपना केनवास स्टेंड पर लगाया और चित्र बनाया |सोचा घर जाकर ही रंग भरूगा |सब सामान इकठ्ठा किया और नीचे चल दिया |झरना इतनी तेजी से बह रहा था कि वहां से उठने का मन ही नहीं हो रहा था |फिर देर हो रही थी उसने जल्दी से कदम बढ़ाए और कुछ ही समय में घर पहुँच कर सांस ली |अब वह रंगों से अपनी कृति को सजाने लगा |चित्र बेहद सुन्दर बना था |सब ने बहुत प्रशंसा की |
आशा सक्सेना
21 नवंबर, 2022
दो सहेलियां
दो सहेलीयां
बेला और चमेली नाम की दो
बालिकाएं थीं जो आपस में बहुत प्रेम रखतीं
थी एक दिन बेला के पापा उसके लिए एक सुन्दर सा फ्रोक लाए |वह पहिन कर अपनी सहेली को दिखाने आई |चमेली के
पापा की आर्थिक स्थिती तब अच्छी नहीं थी |उस
ड्रेस को देख चमेली की आँखों में
आंसू आ गए |
बेला ने कहा लो तुम यह पहन लो तुम पर खूब सजेगी |चमेली ने उसे ले लिया पर जब पहना उसको शर्म आई और बोली मेरे पापा कल ऐसी ही फ्रोक मुझे ला कर देंगे |किसी की कोई वस्तु देख कर उससे नहीं लेनी चाहिए |दुनिया मैं कितनी ही वस्तुएँ हैं |हर व्यक्ति तो सब को खरीद नहीं सकता |पिता ने शांति से अपनी बेटी को समझाया |वह समझी और अपने पापा से किसी की कोई चीज न लेने का वायदा किया | अब उसका मन किसी चीज को देख कर नहीं ललचाता |उसे जो उसके पास है उसमें ही संतुष्ट है
आशा सक्सेना
19 नवंबर, 2022
किस से करूं शिकायत
किसी से क्या चाहिए
शिकायत किससे करू
कोई नहीं सुनता मेरी
हार थक कर आई हूँ
\इधर उधर क्षमा मांगी
किसी ने सहारा न दिया मुझे
अब तक बेसहारा घूम रही हूँ
किसी से सहारे के लिए |
मैंने की अपेक्षा सबसे अधिक ही
क्या यही थी भूल मेरी
यदि सहारा न दिया दूसरों ने
फिर से क्यों लौटी उन तक |
अपनी आदत न थी कभी
किसी से सहारा लेने की
पर अब समझ लिया है
अपने आपको सक्षम बना लेने की |
अपनी आदतों में सुधार करना
चाहा
कोशिश भी की है
मन का भय भी
समाप्त न हो पाया आज तक |
मन को संयत किया है
फिर भी अभी तक
अपने ऊपर विश्वास न हो पाया
अपने कदम बढ़ाने में
किसी का सहारा तो चाहिए |
आशा सक्सेना