30 नवंबर, 2022

जब हंसी का पात्र बना


 


पहले फिसलना

फिर  गिरना

और  सम्हल कर

 उठने का प्रयत्न  करना |

कुछ भी नया नहीं

बड़ा सामान्य सा कार्य

 बचपन में होता

 आए दिन का कार्य  |

 जब उम्र बढ़ने लगती

  हास्यप्रद स्थिति में    

 परिवर्तित होती गई  |

बहुत कठिन होता

साधारण से कार्य का

जगजाहिर होना

किसी को  हंसने का अवसर

खोजना न पड़ता |

एक दिन सड़क पर

पानी भरा था

पर पैर फिसला

गहरी चोट लगी |

उठना कठिन हुआ

पास वाले भाईसाहब ने  

अपना हाथ बढाया

सम्हाल कर उठाया |

मदद तो की पर

हंसने का अवसर न छोड़ा

शरीर बहुत गोल मटोल था

उस पर ही हँसी आई |

यही बात उनने सुनाई

रस ले कर  पड़ोसियों को

मन में कुंठा भरी

पर क्या करता | 


आशा सक्सेना 

 

29 नवंबर, 2022

बचपन

 

 कहाँ  से आया वह 

 भोला भाला  प्यारा सा बचपन 

किसी ने न ध्यान  दिया उस पर  

वह धूल में खेला सड़क पर दौड़ा

तब किसी ने  न टोका उसको  |

कभी टोकने पर प्रलय ही मचा दी उसने

हंसने रोने में अंतर न समझा

किसको प्यार करे या न करे

 उसको यह भी पता नहीं |

क्या सच में वह भी  दुनिया की रीत नहीं जानता

केवल अपने तक ही सीमित रहता

या किसी प्रलोभन में फँस जाता

बचपन में कुछ विभेद न कर पाता  |

कौन अपना कौन पराया

मन से मीठे बोल बोलता

मुझे पुष्प ही अच्छा लगता

काश वह  लौट कर आता |

ऐसा बचपन खोजे न मिलता

जो माँ का प्यार ही समझता

पिता से दूरी भी  न सह पाता

उसने  अपने पराए का अंतर न जाना |

  नहीं चाहता अपने प्यार को  किसी से  बांटना

उसे बड़ा दुःख होता जब कोई बाधा बन कर आता

उससे प्रतिस्पर्धा चाहता

 यह है एकाधिकार का मांमला

उसको कोई समझ न पाता |

आशा

 

28 नवंबर, 2022

कब तक निहारते रहोगे

 

तुम कब तक निहारते रहोगे उसे 

जब श्याम ने समझाया तुम्हें

इतनी समझ न आई तुम्हें

क्या लाभ तुम्हें समझाने का |

मीठी मधुर वाणी तुम्हारी

कटु से कटुतर होती गई

उसके कारण मन विद्रोही हुआ

 किसी की कदर न जानी उसने |

यही कमी प्रारम्भ से थी उसमें

तुमने कभी टोका नहीं उसको

उसने सर उठाया अब तो

क्या फायदा ऎसा हटधर्मी होने का |

ना तो  माँ ने कुछ  सिखाया उसे

ना ही कुछ औरों से सीखना चाहा उसने

उसके व्यबहार से लोगों ने बुरा भला कहा उसे  

मन को और संतप्त किया |

इसमें किस का अहित हुआ

पर तुम तो समझदार थे

तब भी  न समझा पाए उसको

कह दिया वह तो मनमानी करती है |

सोचो हो तुम किसके गुलाम 

उसके या अपनी भावनाओं की तल्खी के

कितना भी गलत हुआ तुमने किया या उसने 

उसको समझाने से क्या फायदा हो जो कुबुद्धि |

 हो बुद्धि का अभाव जिसमें वह किस काम का

हो हुस्न के दीवाने या अन्य आकर्षण तुम्हें रिझाता 

खुद सोचना उसको भी समझाना

क्या सही क्या गलत उसी से सलाह लेना |

आशा सक्सेना

27 नवंबर, 2022

आवाज सुनो अंतर आत्मा की

 



                                                         अपने को जानो पहचानो 

किसी की सलाह ना भी  मानो 

पर सुन कर तो देखो समझो 

कोई तुम्हारा दुश्मन  नहीं होगा |

नेक सलाह ही देगा तुमको 

है तुम्हारा अंतरंग मित्र 

कभी भी न बदलेगा पाला 

न ही गलत सलाह देगा  तुमको |

तुम हो भारत के कर्तव्य निष्ट सपूत 

वह  तुम्हारी जन्म जन्मों की साथी 

कभी अपने कर्तव्यों से न भागी

 उसे  यही संस्कारों की थाती मिली है 

जिम्मेदारी समझी अपनी 

पर तुम ही कदम न बढा पाए 

जो सात जन्मों का  

साथ निभाने का वादा किया था 

बहुत पीछे रह गए उससे

 उसका साथ न दे पाए |

फिर देते हो दुहाई वादाखिलाफी की  

यह तो सोचो किसने वादा तोड़ा 

और  सही राह न दिखाई तुमको |

पहले उसका साथ न दे पाए 

अब उसे ही  इल्जाम दे रहे हो 

झूठा सबित कर रहे हो |

हो तुम कच्ची बुद्धि के  इंसान 

कभी अपने जीवन की  किताब के 

पन्ने पलट कर देखना 

सही क्या है गलत क्या है 

 मैंने कुछ बढा चढ़ा कर नहीं कहा है 

जो भी सलाह दी है  

 तुम्हारे हित के लिए ही दी है |

आशा सक्सेना 




26 नवंबर, 2022

किसने क्या कहा


 

किसीने क्या कहा 

किस किस को दे सफाई

यही बात उसके मन को रास न आई 

आधी जिन्दगी बीती कोई उसे समझ न  पाया |

ना उसके  प्यार  को समझा

ना ही तुम्हारे इकरार  को  जाना

कटू भाषण ही पहचाना |

मानसिक तनाव इतना बढ़ा कि

जीना हराम हो गया  उसका

यह कैसी तुम्हारी भाषा

उसके तुमसे  संबंधों की परिभाषा |

जब तक वह  मौन रहेगी

गुत्थि सुलझ न पाएगी

दोनो एक दूसरे पर दोषारोपण करते रहोगे 

और अपने आप  पर गर्व |

जब तक दोनो आपस में बात न करेंगे

समझेंगे समझाएंगे नहीं

खुश हाल  जीवन जी न पाएंगे दोनो 

सब के मन को ठेस पहुंचाएंगे |

यह बात समझ से बाहर हुई  

बुद्धि कैसे न आई तुम दौनों में

जब प्यार किया था सोचा नहीं था

अब घर को युद्ध का बनाया या  अखाड़ा |

 किसी  की बात न सुनी  ना ही समझी  

कारण रहा अनजान कोई न जान सका उसको

 गुत्थि उलझी ही रह  गई  सुलझ न पाई

सब के प्रयत्न विफल रहे  |

आशा सक्सेना

 

25 नवंबर, 2022

मुझे बहुत कुछ कहना है

 


 मुझे तुमसे बहुत कुछ कहना है

  किसी  से जो  कह न पाई

 पर तुम ने भी सुनी अनसुनी कर दी

 मन मेरा  आहत हुआ फिर भी बहुत धैर्य रखा  |

जब भी कुछ कहना चाहा  गलत नहीं कहा  है

मैंने तो सही राह चुनी थी वह  भी स्वविवेक से

किसी का प्रभाव नहीं था  मुझ पर

 तुमको कैसे समझाऊँ जान  नहीं पाई अब तक |

तुमने मुझको कितना समझा है

अपनाया है दिल से या नहीं

कुछ तो कहो मुझसे या यूँ ही मुझे बहकाओगे

 मन की कहूं  या नहीं मैं कैसे जानूं |

 सही मार्ग दिखलाओ मैंने तुम्हें देवता माना

अपने मन को खोल कर रख दिया तुम्हारे समक्ष

तुमने फिर भी ध्यान न दिया मेरी बात पर

यही वर्ताव मुझे दुविधा में रखे है कैसे पार करूं उसको |

 मन दुविधा में फंसा है  इस से निकलना चाहती हूँ

तुमसे अपने मन की  बातें करना चाहती हूँ

फिर तुम जो सलाह दोगे मुझे स्वीकार होगा

  मन कुछ तो हल्का होगा |

 

आशा सक्सेना 

 

24 नवंबर, 2022

जंगल में मंगल

 मौसम बहुत अच्छा था पर दिन भर घर में ही रहना पड़ रहा था कोरोना महामारी के कारण |मैंने सोचा क्यूँ न जंगल की सैर को जाएं |जल्दी से थोड़ा नाश्ता बनाया और सब तैयार हो गए  जाने के लिए |पर अभी तक यह तो सोचा ही नहीं किस ओर प्रस्थान किया जाए |पास ही सरोवर था और वहां भी पानी था अथाह|कुछ दिन पहले ही बाँध के तीन गेट खोले गए पानी का प्रवाह बहुत तेज हो गया था |  हमने सोचा पहले आसपास घूम लिया जाए फिर झरने के पास बैठ कर भोजन करेंगे |बच्चों ने दौड़ भाग कर थकान का आनंद ले लिया था |अब वे नहीं चाहते थे आगे जाने के लिए |एक पेड़ के नीचे दरी बिछाई  गई  और जिसे बैठना था वह  वहीं रुक गए पर हम जंगल के अन्दर घूमने निकल गए |अचानक हिरणों का एक समूह खेत में घूमता नजर आया |बच्चे अपनी थकान  भूल उनके पास पहुँचने का यत्न करने  लगे |अब वहां बैठना हुआ कठिन |एक ओर बाँध का पानी दूसरी ओर जंगली जानवर |कुछ दूर ही हाथियों का समूह नजर आया जो सरोवर की ओर जा रहा था पानी पीने उनमें दो बच्चे भी थे |
हाथियों के छोटे छोटे बच्चे बहुत सुन्दर दिख रहे थे एक घना पीपल का पेड़ था वहां से कोलाहल सुनाई दे रहा था पक्षियों का |बच्चे बेहद खुश हुए कई पक्षियों की चहचहाहट सुनकर ||अब शाम हो रही थी जल्दी से सारा सामान इकठ्ठा किया और घर की ओर चल दिए |रास्ते में खेत से ताजे भुट्टे खरीदे और घर आकर सिगड़ी पर उन्हे सेक कर सब ने खूब मजा लिया गर्मागर्म भुट्टों  का | दिन  कहाँ समाप्त हो गया मालूम ही नहीं पड़ा|