07 अप्रैल, 2010

सौंदर्य बोध

गीत हजारों बार सुने
चर्चे भी कई बार किये
सच्ची सुंदरता है क्या
इस तक न कभी पहुँच पाये
तन की सुंदरता तो देखी
मन की सीरत न परख पाये
ऐसा शायद विरला ही होगा
जो तन से मन से सुंदर हो
सुंदर सुंदर ही रहता है
मन से हो या तन से हो
यदि कमी कोई ना हो
फिर शिव वह क्यों ना कहलाये
यह तो दृष्टिकोण है अपना
किसको सुंदर कहना चाहे
जिसको लोग कुरूप कहें
वह भी किसी मन को भाये
आखिर सुंदरता है क्या
परिभाषा सुनी हजारों बार
जो प्रथम बार मन को भाये
सबसे सुंदर कहलाये
नहीं जरूरी सब सुंदर बोलें
विशिष्ट अदा को सब तोलें
जिसने चाहा और अपनाया
उसने क्या पैमाना बनाया
तन की सुंदरता देखी
मन को नहीं माप पाया
जिसने जिस को जैसे देखा
अपने मापदण्ड से परखा
उसको विरला ही पाया
अन्यों से हट के पाया
जब आँखें बंद की अपनी
कैद उसे आँखों में पाया
तन तो सुंदर दिखता सबको
मन को कोई न समझ पाया
ऐसा कोई नाप नहीं
जो सच्चा सौंदर्य परख पाता
सबने अपने-अपने ढंग से
सुंदरता को जाँचा परखा
ख़ूबसूरती होती है क्या
कोई भी नहीं जान पाया
यह तो अपनी इच्छा है
किसको सुंदर कहना चाहे
वही मापदण्ड अपनाये
जो उसके मन को भाये |


आशा

04 अप्रैल, 2010

मानसिकता

सब कुछ तुम सहती जाओ ,
उपालंभ तुम्ही को दूँगा ,
धरती सी तुम बनती जाओ ,
साधुवाद न तुमको दूँगा ,
मैं सारे दिन व्यस्त सा रहता हूँ ,
तुम कुछ ना करो मैं कहता हूँ ,
पर यदि कोई त्रुटि हो जाये ,
इसे नहीं मैं सहता हूँ ,
तुममें मुझ में अंतर कितना ,
मैं यह भी न भुला पाया ,
जब भी कोई बात चली ,
खुद को ही महत्व देता आया ,
अनुमति यदि तुमने ना माँगी ,
यह बात सदा दुख देती है ,
यदि मन की बात न कह पाऊँ ,
वह मन में घुटती रहती है ,
अनजान व्यथा मन में मेरे ,
ऐसे घुस कर बैठी है ,
पीड़ा जब हद से गुजरे ,
मन की भड़ास निकलती है ,
अंतर यह सदियों से है ,
इसे पाटना मुश्किल है ,
हर बात तुम्हीं से कहता हूँ ,
तुमसे सलाह भी लेता हूँ ,
पर जब कोई अवसर आए ,
सब श्रेय खुदी को देता हूं ,
मेरी इस अवस्था को ,
शायद तुम ना समझ पाओगी ,
हर बात यदि तुम दोहराओगी ,
मुझको रूखा ही पाओगी ,
दूसरों से यदि तुलना की तुमने ,
मुझसे दूर होती जाओगी ,
लाख कोशिशें करलो चाहे ,
मुझे तुम ना बदल पाओगी ,
मैं जैसा हूँ वही रहूँगा ,
तुम मुझको न समझ पाओगी |


आशा