26 जनवरी, 2019

बाई पुराण



बाई पुराण पर कितना लिखूं
शब्द कम पड़ जाते हैं
हमारी बाई है  सब से अलग  
चाहे जब छुट्टी  मनाती
आती है  होली दीवाली
आते ही बड़ा उपहार मांगती
काम की न काज की
ढाई मन अनाज की की
 कहावत पूर्ण रूप से चरितार्थ करती
उस पर करना पड़ता एतवार
रह गए उपहास बन कर
हमारी वेदना कोई न समझे
बेवकूफ समझ कर हमें
समझ में आता है सब
पर क्या करें अब
बुढ़ापे का कोई न सहारा
यही जान जीना हराम किया हमारा
अपना दुःख किसे बताएं
जो भी आता ज्ञान बाटता
क्या है दोष हमारा
कोई समझ नही न पाता
सारा दोष हमारा ही बताता |
आशा

23 जनवरी, 2019

अवसाद








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अवसाद





थी   प्रसन्न  अपना घर  संसार बना कर
व्यस्तता ऎसी बढ़ी
 कि खुद के वजूद को  भूली
वह यहाँ आ कर ऐसी उलझी
 समय ही न मिला खुद पर सोचने का
जब भी सोचना प्रारम्भ किया
मन में हुक सी उठी
वह क्या थी ?क्या हो गई ?
क्या बनना चाहती थी ?
क्या से क्या होकर रह  गई ?
 अब तो  है निरीह प्राणी
अवसाद में डूबती उतराती
सब के इशारों पर भौरे सी नाचती 
रह गई है  हाथ की कठपुतली हो कर
ना सोच पाई इस से   अधिक कुछ
कहाँ खो  गई आत्मा की  आवाज उसकी
यूँ तो याद नहीं आती पुरानी घटनाएं
 जब आती हैं अवसाद से भर देती हैं 
 मन   ब्यथित कर जाती हैं
उसका अस्तित्व कहीं  गुम हो गया है
उसे  खोजती है या अस्तित्व उसे
कौन किसे खोजता है?
है एक  बड़ी पहेली जिसमें उलझ कर रह गई है 
अवसाद में फँसी ऐसी कि
कोई मार्ग नहीं मिलता आजाद होने का
 अपना अस्तित्व खोजने  का 
  समस्याओं का समाधान खोजने का |

आशा

22 जनवरी, 2019

जिए जा रहे हैं


जिए जा  रहे हैं 
मर मर कर जिए जा  रहे हैं
जीवन को खींछे  जा   रहे हैं
जिन्दगी की गाड़ी न थमती
 उसे ही ढोना है
आखिर कब तक सहारा देगा
न जाने कब थम जाएगा
कौन जाने क्या होगा  
पर हमने हार न मानी है
खून पसीना एक कर
साहस जुटा रहे हैं
हर समस्या का समाधान
जितनी भी कठिनाई आए
कोशिश उसे हल करने की
मन में जुटा रहे हैं
मोर्चा छोड़ नहीं  रहे हैं
जीने की इच्छा आहत हुई है
हो गई है  बोझ अचानक
उसे ही सहे जा  रहे है
एक पहिया हुआ खराब
अब बारी है दूसरे की
जब तक जीना है
कुछ एसा ही सहना है|

आशा