बरसों बरस होती
संचय की आदत सब में
यादों के रूप में
यही मेरे साथ हुआ है |
पुरानी यादों को
बहुत सहेज कर रखा है
अपनी यादों के पिटारे में
यह पिटारा जब भी खोलती हूँ
बहती जाती हूँ
विचारों के समुन्दर में|
इससे जो सुख
दुःख मुझे मिलता
है इतना अनमोल कि
उसको किसी से बांटने का
मन नहीं होता |
बचपन की मीठी यादे मुझे ले जाती उस बीते कल में
वे लम्हे कब बीत गए
पिटारा भरने लगा |
जब योवन में कदम रखा
समस्याओं से घिरी रही
वे दिन भी यादों में ताजे है |
धीरे से समय कब बीता
जीवन में आया स्थाईत्व
सब याद रहा एक तस्वीर सा
अब बानप्रस्थ की बारी आई |
जिम्मेंदारी में उलझी
एक एक लम्हां कैसे कटा
सब है याद मुझे |
जीवन की संध्या में यही माया मोह
मेरा पीछ नहीं छोड़ता कैसे दुनियादारी से बचूं |
कीं जैसे ही ऊंची उड़ान की कल्पना
मन के पंख कटे
ठोस धरातल पर आई |
आस्था की ओर कुछ झुकाव हुआ है
यही है सार मनोभावों का जो मैंने छिपाए रखा है
यादों के पिटारे में |
आशा