जीवन ने बहुत कुछ सिखाया
पर आत्मसात करने में
बहुत देर हो गयी
हुए अनुभव कई
कुछ सुखद तो कुछ दुखद
पर समझने में
बहुत देर हो गयी
साथ निभाया किसी ने
कोई मझधार में ही छोड़
चला
सच्चा हमदम न मिला
लगा जीवन एक लकीर सा
जिस पर लोग चलते जाते
लीक से हटाना नहीं चाहते
रास्ता कभी सीधा तो कभी
टेढ़ी मेढ़ी पगडंडी
सा
सांस खुली हवा में
लेते
कभी घुटन तंग गलियों की सहते
दृष्टिकोंण फिर भी सबका
एकसा नहीं होता
दृश्य वही होता
पर प्रतिक्रियाएँ भिन्न सब की
लेते दृश्य उसी रूप में
जो मन स्वीकार कर पाता
लकीर जिंदगी की
कहाँ से हुई प्रारम्भ
और कहां तक जाएगी
जान नहीं पाया
है छोर कहाँ उसका
समझ नहीं पाया |
आशा