उसने सड़क पर दौड़ लगाई
जल्दी पहुँचने की चाह में
किसी से शर्त लगाई थी और वह जीती भी
खुशी हुई उसके मन में |
उसे किसी से ना बांटा
उसको मन में छिपाए रखा
सब ने उसे स्वार्थी
कहा
अपने तक सीमित कहा
किसी की मदद ना ले पाई
क्या यह गलत हुआ ?
सही गलत के चक्कार मैं
वह उलझी रही खुद में
सोचने की क्षमता कम होने लगी
उसमें हीन भावना आने लगी |
वह सम्हाल ना पाई अपने को
खुशियों से दूर हुई अनमनी और उदास हुई
नदियों की गति सी चंचल
हुई
बहती गई बढ़ती गई बिना सोच के |
अपनी समस्या क्या है वह बता ना सकी
अश्रु जल बह चला उसका
नदी के जल से मिलते ही
नदी की गति और तेज हुई |
वह चली बिना किसी की रोक टोक के
ज़रा सांत्वना मिलते ही आगे बड़ी सहस से
उसने किसी से मदद की आशा ना की
सब को पीछे छोड़ दिया
तभी वह सफल हो पाई |
आशा सक्सेना