गुलाब तो गुलाब रहेगा
चाहे जिस भी रंग का हो
चाहे जिस काम आए
उसकी सुगंध वैसी ही रहेगी
जब प्रेमी को दिया जाए
या भगवान को चढ़ाया जाए
या अर्थी की शोभा बने
जाने वाले को विदा करे
या हो रस्मअदाई
हो अकेली या गुलदस्ते में
उसे तो समर्पण करना ही है
चाहे भक्ति के लिए
लाया गया हो
या प्रेम प्रदर्शन का माध्यम बने
आत्म हनन करना ही है
स्वेच्छा से या अनिच्छा से
है वह परतंत्र
स्वतंत्र छवि नहीं उसकी
जब पेड़ पर होता है
काँटों से घिरा होता है
तोड़ मरोड़ कर
चाहे जब पैरों के तले
मसल दिया जाता है
राह पर फैक दिया जाता है
उसकी है नियति यही |
आशा