हूँ स्वप्नों की राज कुमारी
या कल्पना की लाल परी
पंख फैलाए उडाती फिरती
कभी किसी से नहीं डरी |
पास मेरे एक जादू की छड़ी
छू लेता जो भी उसे
प्रस्तर प्रतिमा बन जाता
मुझ में आत्म विशवास जगाता |
हूँ दृढ प्रतिज्ञ कर्तव्यनिष्ठ
हाथ डालती हूँ जहां
कदम चूमती सफलता वहाँ |
स्वतंत्र हो विचरण करती
छली न जाती कभी
बुराइयों से सदा लड़ी
हर मानक पर उतारी खरी |
पर दूर न रह पाई स्वप्नों से
भला लगता उनमें खोने में
यदि कोइ अधूरा रह जाता
समय लगता उसे भूलने में |
दिन हो या रात
यदि हो कल्पना साथ
होता अंदाज अलग जीने का
अपने मनोभाव बुनने का |
आशा