21 दिसंबर, 2013
19 दिसंबर, 2013
यह क्या हुआ
हरे भरे इस वृक्ष को
यह क्या हुआ
पत्ते सारे झरने लगे
सूनी होती डालियाँ |
अपने आप कुछ पत्ते
पीले भूरे हो जाते
हल्की सी हवा भी
सहन न कर पाते झर जाते
डालियों से बिछुड़ जाते |
डालें दीखती सूनी सूनी
उनके बिना
जैसे लगती खाली कलाई
चूड़ियों बिना |
अब दीखने लगा
पतझड़ का असर
मन पर भी
तुम बिन |
यह उपज मन की नहीं
सत्य झुटला नहीं पाती
उसे रोक भी
नहीं पाती |
बस सोचती रहती
कब जाएगा पतझड़
नव किशलय आएँगे
लौटेगा बैभव इस वृक्ष का |
हरी भरी बगिया होगी
और लौटोगे तुम
उसी के साथ
मेरे सूने जीवन में |
आशा
18 दिसंबर, 2013
हाइकू (२)
(१)
सपने कभी
नही होते अपने
हरते चैन |
(२)
की मनमानी
उलझी सपनों की
दीवानगी में |.
(३)
बड़ों की सीख
सपने कभी
नही होते अपने
हरते चैन |
(२)
की मनमानी
उलझी सपनों की
दीवानगी में |.
(३)
बड़ों की सीख
मान स्वप्न दीवानी
मैं मैं न रही |
(4)
चेहरा तेरा
दर्प से चमकता
सच्चे मोती सा |
(५)
रिश्ता प्यार का
निभाना है कठिन
आज ही जाना |
(६)
यूं न देखते
सोचते समझते
तुझे निभाते |
(७)
किया अर्पण
पूरा जीवन तुझे
तूने जाना ना |
आशा
(4)
चेहरा तेरा
दर्प से चमकता
सच्चे मोती सा |
(५)
रिश्ता प्यार का
निभाना है कठिन
आज ही जाना |
(६)
यूं न देखते
सोचते समझते
तुझे निभाते |
(७)
किया अर्पण
पूरा जीवन तुझे
तूने जाना ना |
आशा
16 दिसंबर, 2013
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