06 मई, 2017

जल की कमी जब हो





तप रही धरा
हुए लू से बेहाल
पर घर के काम
कभी न रुकते
सुबह हो या  शाम
चिंता ही चिंता
लगी रहती
खाली पड़े घट
याद करते
फिर बावड़ी
 रस्सी व गागर
इसके अलावा
कुछ न दीखता
चल देते कदम उस ओर
संग सहेली साथ होतीं
पता नहीं कब
वहाँ पहुँचते
 सीढ़ियाँ उतरते 
कभी थकते 
कुछ देर ठहरते
गहराई में 
जल दर्शन पा
मन में खुश हो लेते
जल गागर में भरते
कई काम 
मन में आते
ठन्डे पानी में
पैर डालते 
पर और काम
याद आते ही
 भरी गागर
सर पर धर
सीधे घर की
राह पकड़ते
यह रोज का है
खेल हमारा
इससे कभी न धबराते 
पर जल व्यर्थ न बहाते |
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आशा