तुम क्यूँ भूले
वे बचपन की यादें
जब साथ मिलकर
खेलते खाते थे |
लंबित गृह कार्य
किया करते थे
जब तक पूर्ण ना हो
भूख प्यास सब
भूल जाते थे |
तब कितना प्रवल
अवधान था
प्रलोभन का
नामों निशाँ न था |
तुम रोज अपना काम करके
मेरा गृह कार्य
कर दिया करते थे
तुम्हीं ने बिगाड़ी थी
डाली थी आदत मेरी
परजीवी हो जाने की |
खुद कार्य करने की
जरूरत न समझी कभी
कभी आत्मनिर्भर हो न पाई
किसी की बैसाखी सदा चाही
ज़रा से काम के लिए ही |
अब भूल समझ में आई
पर अब बहुत देर हो गई है
अपना कार्य स्वयं करने की
आदत जो छूट गई है
अब पश्च्याताप से क्या लाभ
वे दिन लौट तो न पाएंगे |
आशा