करवट बदल कर रातें गुजारी
पर नींद न आई मैं क्या करूं
किससे अपनी बातें कहूं
अपना मन हल्का करूं |
दिन तो व्यस्त रहने में गुजरता है
पर रातें होतीं पहाड़ जैसी लंबी
आत्म विश्लेषण ही हो पाता
पर संतुष्टि को छू तक नहीं पाता |
सही गलत पर विश्लेषण की
मोहर लगना अभी रहा शेष
ऐसा न्यायाधीश न मिला
जो मोहर लगा पाता |
कम से कम रातों में नींद तो आती
स्वप्नों की दुनिया में खो जाती
भोर की प्रथम किरण जब मुंह चूमती
कुछ देर और सोने का मन होता
नभ में पक्षियों की उड़ान और कलरव
जागने को बाध्य करते |
रात्री जागरण का कारण भूल
रात में चाँद तारे गिनना छोड़
मैं उठ जाती और सुबह से शाम तक