तुम मेरे ही रहो
मैं हूँ तुम्हारे लिए
कोई और न हो दूसरा
हम दौनों के मध्य |
कोई बाधा बन उभरे
यह मुझे सहन नहीं
मन चाहे पर मेरा अपना ही
केवल अधिकार रहे |
जिस पर हक हो मेरा
उसे किसी से बाटूं
नहीं स्वीकार मुझे
कमजोरी कहो या तंगदिली |
अपने स्वभाव में
परिवर्तन कैसे लाऊँ
कभी जाना नहीं
किसी ने भी सुझाया नहीं |
यही कमीं रही मुझमें
जिसे आज तक
बोझे सा उठाए रहती हूँ
उस से बच नहीं पाई |
आशा
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा 30.09.2021 को चर्चा मंच पर होगी।
जवाब देंहटाएंआप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
Thanks for the information of my post
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंयह कमजोरी नहीं विशेषता है ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए|
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