सुबह से शाम तक
फिरता रहता हूँ
सड़क पर
यहाँ वहाँ |
फटी कमीज पहने
कुछ खोजता रहता हूँ
शायद वह मिल जाए
मेरे दिल की दवा बन जाए |
मेरी गरीबी
मेरी बेचारगी
कोई समझ नहीं सकता
जिसे मैं भोग रहा हूँ |
एक दिन मैंने देखा
वह खुले बदन
ठण्ड से काँप रहा था
ना जाने क्यूँ
मुझे दया आई
अपनी गरीबी याद आई
कमीज उतारी अपनी
उसे ही पहना दी |
उसकी आँखों की चमक देख
संतुष्टि का भाव देख
मन में अपार शान्ति आई |
बस अब मेरे साथी हैं
यह फटा कुर्ता और पायजामा |
तेल बरसों से
बालों ने न देखा
आयना भी ना देखा
कभी खाया कभी भूखा रहा
फिर भी हाथ ना फैलाया |
क्या करू हूँ गरीब
समाज से ठुकराया गया
यह जिंदगी है ही ऐसी
कुछ भी न कर पाया |
गरीबी के दंशों से
बच भी नहीं पाया |
क्यूँ दोष दूं किसी को
हूँ पर कटे पक्षी सा
फिर भी रहता हूँ
अपनी मस्ती में |
जहां किसी का दखल नहीं है
कोई पूंछने वाला नहीं है
मुझे किसी की
ना ही किसी कोमेरी जरूरत है |
आशा