16 नवंबर, 2013

जन्नत यहीं है


बढ़ती ठण्ड छाई धुंध
कुछ नजर नहीं आता
इंतज़ार धूप का होता
लो छट गया कोहरा
खिली सुनहरी  धूप
 झील में शिकारे
जल में अक्स उनके
साथ साथ चलते
 मोल भाव करते
तोहफे खरीदते
सुकून का अहसास लिए
प्रसन्न वदन  घूमते
आनंद नौका बिहार का लेते
मृदुभाषी सरल चित्त
तत्पर सहायता के लिए
जातपात से दूर यहाँ
इंसानियत से भरपूर
जमीन से जुड़े लोग
सोचने को बाध्य करते
जैसा सौन्दर्य प्रकृति का
बर्फीली पहाड़ी चोटियाँ का
वैसा सा ही रूप दीखता
यहाँ के रहवासियों का
झील शिकारे हरियाली
मन कहता रुको ठहरो
शायद जन्नत यहीं है
यहीं है ,यहीं है |

12 नवंबर, 2013

यंत्र अबोला


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खोजा एक यंत्र अबोला
जो सच्चाई परखता
जिव्हा के तरकश से निकले
शब्द वाण पहचान लेता |
सोचा न था वह ऐसा होगा
मनोभाव तोलेगा
सच झूठ पहचान लेगा
मापक प्यार का होगा |
उसमें एक बिंदु सच का है
दूजा झूठ दर्शाता
मध्यम मार्ग कोई  ना होता
सच सामने आता |
फिर भी एक कमी रह गयी
तीव्रता सच या झूठ की
यह दर्शा नहीं पाता
आकलन उसका कर नहीं पाता |
तब भी वास्तविकता नहीं छुपती
वह जान ही लेता है
दूध को दूध
 पानी को पानी बताता |
एक आम व्यक्ति के लिए
मन की अभिव्यक्ति के लिए
सत्य या झूठ को
उजागर करने के लिए
इस अबोले यंत्र का
है महत्त्व कितना
आज जान पाया |
आशा