लगते बहुत खोखले
मन माफिक बात न होने पर
वह झूठे तेवर दिखाता
अपने को भूल जाता |
है किस्सा नहीं अधिक पुराना
फिर भी जब याद आता
मन विचलित कर जाता
सोचने को बाध्य करता
ऐसे रिश्तों की होती है
अहमियत क्या ?
है एक गाँव छोटा सा
आया वहां एक जामाता
सब आगे पीछे घूम रहे
नहीं थकते कुंवर जी कहते
कटु बचन भी सह कर
उसके नखरे उठा रहे |
फिर भी अकड़
उसकी भुट्टे सी
कम होने का नाम न लेती
मीठे बोल नहीं जानता
तीखा सा प्रहार करता
रखलो अपनी बिटिया को
अब मैं नहीं आने वाला |
बेटी का कोइ दोष तो होता
तब बात में दम होता
वह तो युक्ति खोज रहा
बिना बात तंग करने की
अपनी शान बताने की
मनुहार करवाने की |
क्यूँ कि है वह मान्य
सभी अब आधीन उसके
है यही सोच उसका
मर्जी सर्वोपरी उसकी
क्यूँ कि है वह
उस गाँव का जमाई |
आशा