08 दिसंबर, 2012

लिखने को बेकरार


-
लिखने को बेकरार 
लेखनी रुक न पाएगी
पुरवैया के झोंकों सी 
बढती जाएगी
सर्द हवा के झोंकों का 
अहसास कराएगी
जब कभी गर्मीं होगी 
प्रभाव तो होगा
मौसम के परिवर्तन की 
अनुभूति भी होगी
बारिश की बूंदाबांदी 
 कभी भूल न पाएगी
वे सारे अनुभव 
उन बूंदों के स्पर्श को 
सब तक पहुंचाएगी |
यहाँ वहाँ जो हो रहा
 छुंअन उसकी महसूस  होगी 
प्रलोभन भी होगा
पर वह बिकाऊ नहीं है
  बिक न पाएगी |
अपने निष्पक्ष विचारों का
 बोध कराएगी
यही है धर्म  उसका
 जिस पर है गर्व उसे
वह है स्वतंत्र 
अपना धर्म निभाएगी |

आशा  

06 दिसंबर, 2012

कदम बढाए साथ साथ

https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEidnVrsjs0IfAe8C4NNtMx3k9pObiLI1boEKKw7xcC6V1BhFtgMI1ial_xnfPJvMJYEzsZwvd23bfsjEEml6tFqI4eHBec1Vi861M_lT13SezqUH6NGk71lpSnBjNmRE8Iw2U0dm53Wk2E/s1600/ks7psv8rj6qygga1.D.0.s.JPG
कदम बढाए साथ साथ 
आसमान में जीवन के 
हैं प्रसन्न  वर्तमान मैं
कल की किस को खबर  |


रंग बदलती वादियाँ ,
कही. छू जाती हैं मन को
ले जाती अपने साथ
मद मस्त मलय को |
             आशा


03 दिसंबर, 2012

प्रभाव परिवर्तन का


अकारण कोई नहीं अपनाता
मन शंकाओं से भरता जाता
यह  परिवर्तन हुआ कैसे
छोर नजर नहीं आता
फिर भी परेशान नहीं हूँ
खोजना चाहती हूँ उसे
जो है असली कारक और कारण
इस होते परिवर्तन का
क्या देखा उसने ऐसा
जो खिचा चला आया
बिना जाने अपनापन  जताया
कहीं से रिश्ता भी खोज लाया
वह कितना सही कितना गलत
यह तो नहीं मालूम
पर लगता कोई गहरा छिपा राज
अचानक प्रेम उमढने में
कहीं कोई धोखा तो नहीं
जो छल करे मेरे अनजाने में
मेरी ममता  से भरे जीवन में  
मुझे  कोई भी परिवर्तन
रास  नहीं आता 
समाधान  मन की शंका का 
हो नहीं पाता|
आशा