सागर ने रौद्र रूप धारण किया 
तेज गति से तूफान उठा   
आगे बढ़ा टकराया तटबंध से 
  पास
के घर ताश के पत्तों से  ढहे  
जब मिलने आया तूफान  उनसे |
रहने वाले हुए स्तब्ध  कुछ सोच नहीं पाए
 दहशत से उभर नहीं पाए 
देखा जब उत्तंग उफनती
लहरों को टकराते तट से | 
गति थी इतनी तीव्र तूफान की  
ठहराव की कोई गुंजाइश न थी 
पर टकराने से गति में कुछ अवरोध आया 
 बह
कर आए वृक्षों ने किया  मार्ग अवरुद्ध |
  ताश
के पत्तों से बने बहते मकान 
 
कितनी मुश्किल से ये बनाएगे होंगे
कितना कष्ट सहा होगा मकान बनाने में 
उसे सजाने सवारने में |
प्रकृति भी कितनी निष्ठुर है 
ज़रा भी दया नहीं पालती   
थोड़ा भी समय नहीं लगता
थोड़ा भी समय नहीं लगता
 सब मटियामेट करने में | 
बरबादी का यह आलम देखा नहीं जाता 
आँखें भर भर आती हैं यह दुर्दशा देख 
जाने कब  जीवन पटरी 
पर लौटेगा फिर से  
 सोच  उदासी छा जाती है मन में |
आशा