क्या तुमने कभी मुझे याद
किया
भूले से प्यार का दिखावा किया
यदि हाँ तो कब किया कितना
किया
किस के मार्ग दर्शन में किया |
क्या है एहमियत मेरी तुम्हारी
निगाहों में
या थोपा गया रिश्ता है मेरा तुम्हारा आपस में
या तुमने कभी मुझे प्यार से
चाहा है मुझे
या कहने भर से सतही रिश्ता जोड़ा है मुझसे
या किसी के कहने से यह बंधन स्वीकारा है
मुझे यह रिश्ता नहीं भाता ना ही आकृष्ट करता |
मात्र दिखावा होते उनमें कोई सत्यता नहीं होती
चाहत भी सतही होती जिसे देख
नहीं पाते
केवल महसूस कर पाते जब समाज में रहते |
तब मन को बड़ा कष्ट होता मन
विचलित होता
एकांतवास का इच्छुक होता जीवन
में शान्ति चाहता
पहले जैसा जीवन चाहता
जब भी रात होती फिर दिन होता
फिर चिड़ियों की चहचाहाहट होती |
कब सूरज की ऊष्मा हमारी देह को छू जाती
उसका अद्भुद एहसास होता जीने की तमन्ना जगाता
मन उत्फुल्ल हो गुनगुनाता सूर्य
रश्मियों से खेलता था
अपने नैसर्गिक सौन्दर्य को
बरकरार रखता था |
आशा सक्सेना