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वह चित्र क्या
जो सोचने को बाध्य न करे
इसमें है ऐसा क्या विशेष
जो शब्दों में बांधा न जा सके
सोच तुरन्त मन पर छा जाए
शब्दों में सिमट जाए
तभी लेखन में आनंद आए
डाल से बिछुड़े पत्ते पर
शवनम का मोती हो
जिस में प्रकृति की छाया
सिमटी हो सूक्ष्म रूप में
तब कैसे लेखन से हों महरूम
स्वतः ही कलम चलने लगती है
एक नई छबि मन में उभरने लगती है |
आशा