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ना कोई चिंता ना भय की लकीरें
सर्दी चाहे जितनी हो
सहन शक्ति अपार होती
प्रातः काल जला अलाव
चारो ओर गोला बना
सर्दी से लोहा लेते
मुंह पर भाव विजय के
आते जाते बने रहते
यही तो है बचपन
किसी चुनौती से हार न मानी
अलाव की गर्मीं से सर्दी हारी
यह न केवल बच्चों का है शगल
बड़े भी शामिल होते इसमें
बच्चे दिन में लकड़ी बीनते
लम्बी हो या छोटी
मोटी हो या पतली
पर हों सूखी
फटे चिंदे भी साथ रखते
थैली में इकट्ठा करते
माचिस रखना नहीं भूलते
जब अलाव जल जाता
सब ताप सेकने आ जाते
बड़े तो रजाई में दुबके रहते
वहीं से नसीहत देते
सावधानी बरतना
कहीं जल न जाना |
सर्दी चाहे जितनी हो
सहन शक्ति अपार होती
प्रातः काल जला अलाव
चारो ओर गोला बना
सर्दी से लोहा लेते
मुंह पर भाव विजय के
आते जाते बने रहते
यही तो है बचपन
किसी चुनौती से हार न मानी
अलाव की गर्मीं से सर्दी हारी
यह न केवल बच्चों का है शगल
बड़े भी शामिल होते इसमें
बच्चे दिन में लकड़ी बीनते
लम्बी हो या छोटी
मोटी हो या पतली
पर हों सूखी
फटे चिंदे भी साथ रखते
थैली में इकट्ठा करते
माचिस रखना नहीं भूलते
जब अलाव जल जाता
सब ताप सेकने आ जाते
बड़े तो रजाई में दुबके रहते
वहीं से नसीहत देते
सावधानी बरतना
कहीं जल न जाना |
आशा