07 जुलाई, 2012

शासन की डोर न सम्हाल सके


शासन की डोर न सम्हाल सके
सारे यत्न असफल रहे
मोह न छूटा कुर्सी का
 क्यूंकि लोग सलाम कर रहे |
ना रुकी मंहगाई
ना ही आगे रुक पाएगी
अर्थ शास्त्र के नियम भी
सारे  ताख में रख दिए |
अर्थशास्त्री बने रहने की लालसा
फिर भी बनी रही
जहाँ भी कोशिश की
पूरी तरह विफल रहे |
सत्ता से चिपके रहने की
भूख फिर भी न मिटी
कुर्सी से चिपके रहे
बस नेता हो कर रह गए |
आशा

02 जुलाई, 2012

पहली फुहार


टपकता पसीना
सूखे नदी नाले
सूखे सरोवर सारे
पिघलते हिम खंड
कराते अहसास गर्मीं का
हैं बेहाल सभी
बेसब्री से करते
इन्तजार जल प्लावन का
छाई घन घोर  घटाएं
वारिध भर लाए जल के घट
उनसे बोझिल वे आपस में टकराते
गरज गरज जल बरसाते
दामिनी दमकती
 हो सम्मिलित खुशी में
नभ में आतिशबाजी होती
झिमिर झिमिर बूँदें झरतीं |
मौसम की पहली बारिश से
धरती भीगी अंचल भीगा
मिट्टी की सौंधी खुशबू से
मन का कौना कौना महका |


 दादुर मोर पपीहा बोले
वन हरियाए उपवन सरसे
गर्मीं की हुई विदाई
चारों ओर हरियाली छाई |




आशा