अधरों के बीच दबा सिगरेट
खूब धुएँ के छल्ले निकाले
पर कभी न सोचा कितना धुआँ
घुसेगा शरीर के रोम रोम में !
श्वास लेना भी दूभर होगा
खाने में भयानक कष्ट
मुँह न खुलता ! हुए बेआवाज़ !
जिसने जो उपाय बताये सब किये
पर सिगरेट न छोड़ पाए !
रोग बढ़ता गया तब आये
डॉक्टर की शरण में
उसने पहला प्रश्न यही पूछा
"क्या धूम्रपान किया निरंतर ?
यह तो कैंसर हो गया है
जो फ़ैल रहा है निरंतर
जीवन की अंतिम घड़ी तक
इससे छुटकारा न मिल पायेगा !"
बच्चों को बुलाया पास बैठाया
काग़ज़ कलम ले आये वे
ये रहा आख़िरी सन्देश
कोई भी शौक पालना पर
सिगरेट को हाथ न लगाना
यही है नसीहत मेरी
और कुछ विरासत में नहीं !