04 अप्रैल, 2020

व्यस्तता के अभाव में



                                     सुबह से शाम तक काम ही काम
ज़रा भी नहीं आराम जिसके लिए तरसती थी
मैं  सोचती थी क्या यही है  जिन्दगी  ?
 फिर सोच से समझोता कर लेती थी
 यही जिन्दगी की असलियत थी
एक अजीब सी बेचैनी होती थी
सारे दिन  काम ही काम
जब थक हार कर बैठ जाती थी
पीछे से किसी काम के लिए आवाज आती थी
 अरे यह कार्य तो शेष रहा कब तक समाप्त  होगा
 मैंने समझ लिया था  काम ही है जिन्दगी
काम सभी को होता प्यारा
 कामचोर सदा मात खाता
जब से कोरोना का हुआ प्रकोप
घर में रहना हुआ  अनिवार्य  
बहुत बचैनी होती है क्या काम करूं
कैसे समय व्यतीत  करूँ
अब समझ पाई हूँ बिना काम किये
 जीवन कितना कष्टकर होता है
 क्या है आवश्यकता निष्क्रीय पड़े रहने की
अब मुझे आराम अच्छा नहीं लगता
खोजती रहती हूँ कैसे समय बिताऊँ
लेटे बैठे चैन नहीं पड़ता
 आराम का भूत दिमाग से उतरा है
 बिना काम किये  धर में रहना
 सजा सा लगाने लगा है
 देश हित को ख्याल में रख लगता है
मैंने भी कुछ काम किया है
देश का साथ  दे कर लौक डाउन कर
सरकार के हाथ मजबूत कर |   

आशा

03 अप्रैल, 2020

इस तिरंगे की छाँव में





इस तिरंगे की छाँव में

जाने कितने वर्ष बीत गए
फिर भी रहता है इन्तजार
हर वर्ष पन्द्रह अगस्त के आने का
स्वतंत्रता दिवस मनाने का |
इस तिरंगे के नीचे
हर वर्ष नया प्रण लेते हैं
है मात्र यह औपचारिकता
जिसे निभाना होता है |
जैसे ही दिन बीत जाता
रात होती फिर आता दूसरा दिन
बीते कल की तरह
प्रण भी भुला दिया जाता |
अब भी हम जैसे थे
वैसे ही हैं ,वहीँ खड़े हैं
कुछ भी परिवर्तन नहीं हुआ
पंक में और अधिक धंसे हैं |
कभी मन में दुःख होता है
वह उद्विग्न भी होता है
फिर सोच कर रह जाते हैं
अकेला चना भाड़ नहीं फोड सकता
जीवन के प्रवाह को रोक नहीं सकता |
शायद अगले पन्द्रह अगस्त तक
कोई चमत्कार हो जाए
हम में कुछ परिवर्तन आए
अधिक नहीं पर यह तो हो
प्रण किया ही ऐसा जाए
जिसे निभाना मुश्किल ना हो |
फिर यदि इस प्रण पर अटल रहे
उसे पूरा करने में सफल रहे
तब यह दुःख तो ना होगा
देश भक्ति के लिए जो प्रण हमने किया था
उसे निभा नहीं पाए |
अपने देश के प्रति कुछ तो निष्ठा रख पाए
 किसी विशिष्ट व्यक्ति का तमगा नहीं चाहिए 
सच्ची देश भक्ति   का जज्बा चाहिए 
जिससे हम  अपना प्रण पूरा कर पाएं |

आशा

01 अप्रैल, 2020

ख्याल



ख्याल क्यूँ सो गए स्वप्नों में क्यूँ हुए नाराज   
याद न आए कभी  अपनों की छाया तक  में
कभी भूले से मन में भी टिक जाया करो
इस तरह हमें न सताया करो
क्या भूल हुई हमसे ?
क्यूँ  इस तरह  नजरअंदाज किया
किसी ने न खबर ली हमारी  
जीवन में पहले ही से गम कम  न थे
क्या कारण हुआ और उन्हें बढ़ा चढ़ा  फैलाने  का
रोने को बाक़ी   जिन्दगी बहुत  है
कुछ पल तो दिए होते हंसने  मुस्कुराने को
ख्यालों क्या यह गलत नहीं है
मुझसे मेरा सुख क्यूँ छीन लिया तुमने  
मुझ से यह दूरी कैसी कारण तो बताया  होता
किस बात के लिए की  है उपेक्षा मेरी
यदि  अपनी त्रुटि जान पाती
 कोई  अपेक्षा न करती तुमसे भी  
 अपने गलत सोच को दर किनारे करती
 तुम्हें उलाहना  कभी न देती
मुझे ख्यालों में दिन रात जीना बहुत प्रिय है
 तुम कैसे भूले? क्या है यह अन्याय नहीं
तुमने स्वप्नों में भी  आना छोड़ दिया
मेरे प्यार का क्या  अंजाम  दिया |

                                 आशा

31 मार्च, 2020

हईकू(कोरोना)





   





१-कोरोना भय
जान सांसत में है
बक्त ना कटे

२-लौक डाउन
से हुआ बड़ा फर्क
जीवन बचा

३-कोरोना से है
जान का भय नहीं
गरीबी मारे

४-मजबूरी में
मजदूर चला है
नियम तोड़ 

५-कब काटेंगे 
सामजिक दूरी के 
इक्कीस दिन
                                                                               आशा

पलाश



  बसंत ऋतु को कर विदा 
पतझड़ ने डेरा डाला
पत्ते पीले हो झड़ने लगे
फिर भी कुछ पौधों पर 
हरी हरी कलियों में से 
झांक रहे केशरिया पुष्प  
हाथों से यदि छू लिये  
हाथ पीले हो जाते  
अभी भी  स्रोत यही हैं
देहातों में केशरिया रंग के     
 घर पर इनसे ही रंग बना कर 
होली पर खेलते रंग 
प्रियतमा के संग 
हो जाते अनंग
 खुशीयों में रम के
फूलों की होली के
 हैं ये प्रमुख हमजोली 
ये  होते बहुत उपयोगी  
दवा में उपयोग किये जाते 
श्वेत पुष्प पलाश के 
तंत्र मन्त्र साधना में 
काली शक्तियों को दूर करने में
पाते सफलता साधक
  केशरिया श्वेत पुष्पों के उपयोग से  |
आशा