28 दिसंबर, 2018

लौटा दो मुझे बीता हुआ बचपन

नहीं चाहिए मुझे 
कोई उपहार
बस लौटा दो मेरा
बीता हुआ बचपन
कहना बहुत सरल है 
पचपन में बचपन की बातें

शोभा नहीं देतीं
मैंने तो पचपन पार कर लिया
तुम क्या जानों ?
कितना सुकून मिलता है
उस दौर को याद कर
वहीं जाना चाहता है
पीछे पलटना चाहता है

 वे दिन भी कितने प्यारे थे
खिलोने थे  मुझे बहुत प्यारे
दिन उनमें खो कर 
कहाँ गुम हो जाता था 
जान न पाती थी 
सिलाई कढ़ाई सीखी थी 
सभी खेल खेल में 
पढ़ना पढ़ाना भी
 तभी का शौक था 
जीवन जीने का
 था शगल अनोखा|
आशा

27 दिसंबर, 2018

नव वर्ष कैसा हो



                                      स्वागत आगत  नव वर्ष का
यह वर्ष तो बीत चला
अपनी कमियों को पीछे छोड़
कुछ अच्छे कुछ व्यर्थ कार्यों का
बोझ अपने साथ लिए
नया साल आया है
आत्म विश्लेषण का
क्यूँ न आत्म मंथन कर लें
कुछ बादे  खुद से करलें  
कम ही वादे  खुद से हों
जो हों दिखावे के लिए नहीं
हों ऐसे जो पूरे  किये जा सकें
ना हों  सतही हों उपयोगी 
अपने को समाज में  
करने को स्थापित
किसी का अहित न हो
मेल मिलाप का हो मंजर
आनेवाले वर्ष में
हों  ऐसे  कार्य जिन में
 सभी के हित निहित
सबके लिए सुखदायक हों
 कामना है  यही कि आने वाला वर्ष
 सुख समृद्धि ले कर आए
चारों ओर खुशहाली लाए
 हों  ऐसे  कार्य कि
 जग  को मिले प्रेरणा  
साकार हो  समूह में
 रहने की कल्पना
  फलेफूले वसुधैव  कुटुंबकम की अवधारणा |
                                           आशा

26 दिसंबर, 2018

एहसासों की छुअन


जीवन वृक्ष में हरियाली  छाई
अनगिनत पत्ते लगे
हरे भरे  और  पीले भूरे 
उन पर धूप एहसासों की
तरह तरह के अनुभवों की
 भावनाएं उकेरी गई उन पर
अनुभव कभी कटु हुए
कभी हुए सुमधुर
कड़वाहट घुली मन में
पर समय पा भुला दी गई
यादों में बसी मीठी यादें
उनके एहसासों की छुअन
पैठ गई दिल के कौने में
अनुभवों का हुआ  जखीरा
शब्दों का साथ पा हुआ गतिमान
वह बह चला तीव्र गति से
 अभिव्यक्ति की नदिया में 
नई रचना ने जन्म लिया 
फिर  नई  खोज में किया  विचरण
निर्वाध गति से अनवरत आगे बढ़ता 
पर एहसासों की छुआन दूर न हो पाती
आस पास लिपटी रहती
घेर लेती  अपनी बाहों में 
बढ़ती उम्र के साथ
 होता एहसास भिन्न
 बचपन में बात्सल्य का प्रभाव 
युवा अवस्था  में 
 प्रेम प्रीत के एहसासों  की  छुअन 
वानप्रस्थ आते ही 
 छुअन बिचारों की  करवट लेती 
भक्ति की ओर झुकती 
आस्था बढ़ती जाती 
प्रभु से एकाकार होना चाहती |

आशा

25 दिसंबर, 2018

सन्देश



तुम जाना उस देश
पहुंचाना उसका  सन्देश
वे तो भूल गए
ना ही   पत्र लिखा
 ना दिया कोई सन्देश
  पलक पावड़े बिछाए रही
विरहन मन को बहलाए रही
पर कब तक खुद को भुलावे में रखती
मन में खुद को तोल रही
क्या खता उसकी रही
जो बाँध न सकी उनको
अपने  प्रेमपाश  में
 कहाँ कमी रह गई उस बंधन में
मन में रहा बोझ
है यह कैसी विडंबना  
कोई नहीं समझ  पाया
शायद है यही नीयती का फैसला  
इससे कोई न बच पाया
यहीं सभी  झुक जाते हैं
समदर्शी  की सत्ता के आगे
अपने कर्मों का हिसाब
इसी लोक में हो जाता है
कहीं और नहीं जाना पड़ता |
 आशा

23 दिसंबर, 2018

बड़ा दिन


हूँ बहुत व्यस्त  आज
सभी जुटे स्वच्छता अभियान में
आने वाले कल के इन्तजार में
पर मैं न साफ कर पाई
अपनी टेवल अपना कमरा
चारों ओर बिखारा हुआ सामान
 न समेट पाई अभी तक
कारण कुछ तो रहा होगा
मैं रही व्यस्त
 मनपसंद मिठाइयां बनाने में
न बता पाई कभी किसी को
सजाया जा रहा क्रिसमस ट्री को
उपहार भाँती भाँती के देने को
लपेटे गए हैं रंग बिरंगे कागजों में 
स्थान दिया है उनको उस पर
 रंग भरी सुगन्धित
  मोमबत्तियों के बीच   
बच्चों का उत्साह देख
यादों का अम्बार  लगा है
अब अधिक समय नहीं शेष
  सांता  के आने में
बड़ा दिन मनाने में
उपहारों के आदान प्रदान में
यही मेलमिलाप है आवश्यक
और छिपा हुआ उद्देश्य
 यह त्यौहार मनाने में |
                                               
                                              

                                                आशा