चुभन नागफणी की
दरकते रिश्ते
मन में नफरत ने घर किया
व्यंग बाणों ने मन को
छलनी कर दिया |
कटुता ने पैर पसारे
विचार शून्य मन हुआ
रूखे रिश्ते सतही व्यवहार
पीठ मुड़ते ही
कटु शब्दों के बाण
कर देते जीना हराम|
क्या सभी होते सराबोर बुराई में
उनमें कुछ भी अच्छा नहीं होता
कभी उन पर भी ध्यान दिया जाता |
मखमल में लपेट किये गये वार
कितनी गहराई तक चुभते हैं
इसका भी भान नहीं रहता
बेबात छिड़ जाती बहस
इस हद तक पहुँच जाती
क्या सही क्या होता गलत
सुध इसकी भी नहीं रहती |
लगती है परम्परा बुराई खोजने की|
निंदा रस का आनन्द पा
ख़ुद ही प्रसन्न हो कर
संतुष्ट हुआ जा सकता है
पर केवल अहम की तुष्टि के लिये
किया गया अपमान सहना
सबकी मानसिकता नहीं होती
चुभन काँटों की सहन नहीं होती |
अब तो लगने लगा है
जो जैसा है वैसा ही रहेगा
उसमें परिवर्तन की आशा
है छलावा मृगतृष्णा सा
जिसके पीछे भागना
है केवल समय की बर्बादी |
आशा
यह भी देखें |आशा करती हूँ यह लाइनें दोहे की श्रेणी में आती हैं :-
वार तर्क कुतर्क का, होता है आसान |
शायद आज के सोच का, यही है विधान ||
आशा
दरकते रिश्ते
मन में नफरत ने घर किया
व्यंग बाणों ने मन को
छलनी कर दिया |
कटुता ने पैर पसारे
विचार शून्य मन हुआ
रूखे रिश्ते सतही व्यवहार
पीठ मुड़ते ही
कटु शब्दों के बाण
कर देते जीना हराम|
क्या सभी होते सराबोर बुराई में
उनमें कुछ भी अच्छा नहीं होता
कभी उन पर भी ध्यान दिया जाता |
मखमल में लपेट किये गये वार
कितनी गहराई तक चुभते हैं
इसका भी भान नहीं रहता
बेबात छिड़ जाती बहस
इस हद तक पहुँच जाती
क्या सही क्या होता गलत
सुध इसकी भी नहीं रहती |
लगती है परम्परा बुराई खोजने की|
निंदा रस का आनन्द पा
ख़ुद ही प्रसन्न हो कर
संतुष्ट हुआ जा सकता है
पर केवल अहम की तुष्टि के लिये
किया गया अपमान सहना
सबकी मानसिकता नहीं होती
चुभन काँटों की सहन नहीं होती |
अब तो लगने लगा है
जो जैसा है वैसा ही रहेगा
उसमें परिवर्तन की आशा
है छलावा मृगतृष्णा सा
जिसके पीछे भागना
है केवल समय की बर्बादी |
आशा
यह भी देखें |आशा करती हूँ यह लाइनें दोहे की श्रेणी में आती हैं :-
वार तर्क कुतर्क का, होता है आसान |
शायद आज के सोच का, यही है विधान ||
आशा