06 सितंबर, 2018

मितवा मेरे







मैं धरती
तुम आकाश
कैसे हो दूरी पार
कैसे मिलन हो पाए |
हम दोनों नदिया के दो किनारे
चलते हैं साथ साथ
पर कभी मिल नहीं पाते
जानते हो क्यूँ ?
हम खो गए थे 
इस भव सागर में
 पर कोई पल न बीता जब
  याद न किया तुमको |
 हर सुबह और रात
 तुम्ही से होती है
तुम्ही बसे मेरे मन  में
अब कभी न होना जुदा |
लौ तुमसे ही लगी  है
टूट न पाएगी डोर
जो तुमसे बंधी है
कभी तो राह मिलेगी |
यह दूरी जाने कब मिटेगी
आशा पर हर श्वास टिकी है
जाने कब भेंंट होगी तुमसे
 भेंंट ही है मेरा उद्देश्य |
मैंने माँँगी कितनी मन्नत
तुमसे भेंंट के लिए
जब मिल जाओगे 
तो न होने दूँँगी जुदा |
जाने तुम कब जानोगे
समय है कितना कीमती 
इस पल में जी लेने दो
कल की क्यूं करे फिकर |


आशा