मैं धरती 
तुम आकाश 
कैसे हो दूरी पार 
कैसे मिलन हो पाए |
हम दोनों नदिया के दो किनारे 
चलते हैं साथ साथ 
पर कभी मिल नहीं पाते 
जानते हो क्यूँ ?
हम खो गए थे  
इस भव सागर में 
 पर कोई पल न बीता जब 
  याद न किया तुमको |
 हर सुबह और रात 
 तुम्ही से होती है 
तुम्ही बसे मेरे मन  में 
अब कभी न होना जुदा |
लौ तुमसे ही लगी  है 
टूट न पाएगी डोर 
जो तुमसे बंधी है 
कभी तो राह मिलेगी |
यह दूरी जाने कब मिटेगी 
आशा पर हर श्वास टिकी है 
जाने कब भेंंट होगी तुमसे 
 भेंंट ही है मेरा उद्देश्य |
मैंने माँँगी कितनी मन्नत
तुमसे भेंंट के लिए 
जब मिल जाओगे  
तो न होने दूँँगी जुदा |
जाने तुम कब जानोगे 
समय है कितना कीमती  
इस पल में जी लेने दो 
कल की क्यूं करे फिकर |
आशा
