09 जुलाई, 2022

मन की उथलपुथल


                               कितनी बार सोच विचार कियी

सही गलत का आकलन करना चाहा  

पर  किसी निराकरण पर न पहुंची

मन में असंतोष लिए घूमती रही |

कितनी बार तुमसे कहना चाहा

पूंछना भी चाहा तुम्हारे मन में क्या चल रहा है

 तुमसे भी सलाह लेनी चाही पर

तुमने भी साथ न दिया मेरा |

अब मैं किस का इतजार करूं

अपने विचारों पर मोहर लगाने के लिए

जो मैं सोचती हूँ क्या वह सही नहीं है

या जरूरत है और मंथन की उनके |

कभी सोचा न था इतनी उलझ जाऊंगी

अपने विचारों को रंग बिरंगे

 शब्दों का लिवास पहना न पाऊँगी 

न जाने क्या होगा अभी कुछ पक्का भी नहीं है |

हूँ अनिर्णय की स्थिती में सुध बुध खो रही हूँ

बीच भवर में डूब रही  हूँ

अब तो जीवन बोझ हुआ है

 भवसागर से कैसे पार उतर पाऊँगी |

आशा    


07 जुलाई, 2022

आत्म मंथन करो


 

अपने मन के  पापों  को

किसी और पर मत थोपो

जब भी झांको अपने अन्दर

सही विचार को जन्म दो |

झूट सच में जब भी उलझोगे

खुद को ही हानि पहुँचाओगे

कभी समस्याओं से उभर न पाओगे

उलझ कर ही रह जाओगे  |

जीवन दिखता है पहाड़ सा

पर कट जाता है क्षण भर में   

क्या करना है क्या नहीं

इनमें ही उलझे रह जाओगे |

खुद पर इतना विश्वास रखो  

अपने  कर्तव्यों से पीछे नहीं हटो

अधिकार तुम्हारे हैं सुरक्षित

उनको कोई छीन नही सकता |

जिसने भी ऐसा कदम उठाया

उस पर भी ऐसा समय आएगा

चिंता न करो ईश्वर सब देख रहा  

होनी में कुछ देर है अंधेर नहीं है |

 जितनी गलतफैमियाँ पाली  है   

 वे देर सवेर सभी सामने आएंगी  

उसके मन को कष्ट पहुंचाएंगी

पर बीता हुआ कल लौट न पाएगा |

माना है वह गुणों की धनी

पर झूठा अहम भरा कण कण में 

खुद को सर्वश्रेष्ठ समझती है

यही कमीं रही उसमें |

आशा

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

  

  

 

 

 

 

  

 

 

  

 

 

06 जुलाई, 2022

दुविधा में हूँ


 

उतार चढ़ाव जीवन के

इतना कमजोर कर देते हैं

मन मस्तिष्क बेकल हो जाता है

क्या हो रहा समझ से परे है |

घटनाओं का अम्बार लगा है

ऊंठ किस करवट बैठेगा मालूम नहीं

क्या कभी जिन्दगी की गाड़ी

सीधी पटरियों पर चल पाएगी |

 यूं ही सडकों पर टप्पे खाता फिरूंगा

या कभी स्थाईत्व भी आएगा जीवन में

मेरे बेरंग जीवन में रंग कब भरेगा 

यह उथलपुथल कब होगी समाप्य |

अब मैं बैठा हूँ इन्तजार में

तुमसे क्षमा मांगूं या  कहने में चलूँ

  तुम्हारे हाथों की  कठपुतली बनूँ

या अपनी  जिम्मेंदारिया पूर्ण करूं |

न जाने समझ पाने में तुम्हें

कहाँ  भूल हुई मुझ से

तुम्हारे मन का सोच है कितना मैला

गहराई तक  डस रहा है मुझे |

कैसे समस्याओं का हो निदान

जब पहल ही नहीं की तुमने

ना ही कभी मुझे समझीं

फिर इतने दिनों का साथ

एक ही  पल में ही ठुकराया तुमने |

आशा

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

स्वप्न क्या करते





 






                स्वप्नों का आज कल

जीवन पर पड़ता गहरा प्रभाव

यदि केवल  दिल से सोचा

दिमाग से न  काम लिया |

भावुक और कमजोर लोग

बह जाते उस बहाव में

कभी कभी  बहाव में  

अपना आपा भी खो देते  |

यहीं बातों को तूल मिलता

हवा भी बढ़ावा देती जन मत की

कभी विश्वास भी उठ जाता

अपने सोच पर से |

लगने लगता सारा जग एक  

 फरेवों की दुकान सा

अब सुविचारों पर से भी

 दूर हटा  मन मेरा  |

वह कैसे जिए खोखले

आदर्शों पर निर्भर हो कर

जब कोई फल नहीं मिलता

हो किसी प्रकार का अच्छा या बुरा

 मुझे  कोई फर्क नहीं पड़ता |

मन के जख्म भरने का

 एक ही साधन था स्वप्नों का  

अब उसने भी साथ छोड़ा  

मेरी खुशियों से बैर पाला |

जब जन्म लिया इस धरती पर

मरना भी है यहीं

पञ्च तत्वों में विलीन होना है

फिर माया मोह कैसा |

पूर्व जन्म के कर्म फलों से भी  

भ़ागा  नहीं  जा सकता

यही सब सामने है मेरे

शायद यही है प्रारब्ध मेरा |

आशा

05 जुलाई, 2022

कोई न्याय करे


दिल से मसी बनाई है

विचारों तक उसे पहुंचाई

शब्दों की लेखिनी चुनी है
मन में छिपी भावनाओं के शब्द लिए |
छापे मन के पटल पर
फिर भी कहीं रही कमी
अपने शब्दों को आवाज देने में
अपने दिलवर को मनाने में |
दिल की मसी से लिखा है

अपने मन का सारा हाल

हुआ बेहाल किसी के समक्ष

अपने मन को खोल कर रखने में |

चाह रहा था कोई देखे उसे

पढ़े उसका मनन करे

फिर अपनी तरफ से

फैसले पर मोहर लगाए

 खुद के विचार प्रस्तुत करे |

तभी तो निष्पक्ष निर्णय हो पाएगा

बिना लाग लपेट के फेसला हो पाएगा

 वही निर्णय होगा मान्य मुझे

जिसमें किसी की बैसाखी न होगी साथ  |

 किसी की सलाह की गंध नही आएगी

अपने मन में क्या निर्णय किया 

यह भी स्पष्ट हो जाएगा 

तुम्हारे मन में क्या विष  घुला है 

यह किसकी  शरारत है |

आशा 


 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

04 जुलाई, 2022

सायली छंद

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                               हम दौनों 

            नहीं दूर कभी 

       सदा 




पास ही रहे 

        हम दोनो 

पास पास रहे 

कभी न रहे दूर 

 क्या  यही  नहीं हैं  कमी 

             हैं  दोषी हम दौनों  

                सोचता रहा मैं 

                 मन में    |

२-   तुम से 

कब कहा  मैंने  

मैं रहा  पास तुम्हारे 

झूठे आरोप  लगाए  हैं तुमने 

यह   कैसा न्याय  तुम्हारा 

कहाँ  गलती रही 

 दौनों   की  |

३-एक छत 

के नीचे रहना 

सरल नहीं लगता है 

विचार नहीं मिलते जब भी 

होता तकरार का निवास 

कलह प्रवेश करती 

जीवन बेरंग 

होता |

४- क्या  यही 

है  मेरी  कहानी 

जीवन थमा नहीं है 

उसे  जिया भी नहीं है 

किससे शिकायत करूं 

इसका फलसफा 

है यही |

५-    तुम समझो 

      या न समझो 

 मेरा कर्तव्य पूर्ण हो 

मंसूबे  पूरे करने तो दो 

यही है ख्याल मेरा 

उससे दूरी कैसी 

समझने दो 

मुझे |

६-तुम जानो 

  या नहीं मानों 

हो तुम सुन्दर सी 

है नाजुक नर्म स्वभाव तुम्हारा 


 रहीं  चंचल चपल बिंदास 

हो   मोहिनी सी 

ख्याल मेरा 

ऐसा