29 जुलाई, 2011

भय


हूँ भया क्रांत
और जान सांसत में
कोइ आहट नहीं
फिर भी घबराहट
तनी है भय की चादर
आस पास |
इससे मुक्त होने के लिए
अनेकों यत्न किये
पीछा फिर भी
न छूट पाया |
अब तो लगता है
यह है उपज मन की
दबे पाँव आ जाता है
छा जाता मन
मस्तिष्क पर |
कुछ करने की
इच्छा नहीं होती
फिर से लिपट जाता हूँ
उसी चादर में
भय के आगोश में |
ओर खोजता रहता हूँ
वास्तविकता उसकी
जानना चाहता हूँ
है सत्य क्या उसकी |

आशा



27 जुलाई, 2011

छलकने लगा प्यार


भवें लगती कमान
नयनों के सैन बाण ,
निशाना भी है कमाल
यूँ ही व्यर्थ जाए ना |

पानी व दर्प उसका
लगता सच्चे मोती सा ,
बिना प्रीतम से मिले
चैन उसे आए ना |

प्रिय मिलन की आस
लगी लौ हुई बेहाल ,
विचित्र हाल मन का
पर बतलाए ना |

मिला जब मीत आज
खुशी का ना कोइ नाप ,
छलकने लगा प्यार
समेटा भी जाए ना |

आशा

25 जुलाई, 2011

वह चली गयी


घने वृक्षों के झुरमुट में
शाम ढले एकांत में
रोज मिला करते थे
कुछ अपनी कहते
कुछ उसकी सुनते थे |
जाने कितने वादे होते थे
वह इकरार हमेशा करती थी
बहुत अधिक चाहती थी
कहती रहती थी अक्सर
तुम यदि चले गए
नितांत अकेली हो जाउंगी
फिर किस के लिए जियूंगी
किसकी हो कर रहूंगी |
काफी समय बीत गया
यही सिलसिला चलता रहा
अब व्यवधान आने लगे
रोज होती मुलाकातों में
कुछ बदलाव भी नजर आया
उसकी चंचल चितवन में |
जब भी जानना चाहा
वह टाल गयी
मुस्कुराई नज़र झुकाई
बात आई गयी हो गयी |
जो आग दिल में लगी
क्या मन में उसके भी थी
क्या वह भी सोचती थी ऐसा
वह सोचता ही रह गया
वह तो चली गयी
किसी और की हो गयी
देख कर बेवफाई उसकी
ग़मगीन विचारों में लींन
वह अकेला ही रह गया |

आशा