-धधकती आग ढहते मकान
कम्पित होती पृथ्वी
कर जाती विचलित
मचता हाहाकार
जल मग्न गाँव डूबते धरबार
हिला जाते सारा मनोबल
सत्य असत्य की खींचातानी
लगने लगती बेमानी
करती भ्रमित झझकोरती
क्षणभंगुर जीवन की व्यथा
छल छिद्र में लिप्त खोजता अस्तित्व
हुतात्मा सा जीता इंसान
कई विचार मन में उठते
आसपास जालक बुनते
मन में होती उथलपुथल
हूँ संवेदनशील जो
देखती
उसी में खोजती रह जाती हल
विचारों की श्रंखला रुकती नहीं
कहीं विराम नहीं लगता
हैं सब नश्वर फिर भी
मन विचलित होता जाता
जाने क्यूं व्यथित होता |
आशा