कई विधाएं जीवन की 
धाराओं में सिमटीं 
संगम में हुईं  एकत्र 
प्रवाहित हुईं 
लिया रूप नदिया का  
 विचारों की नदिया
सतत 
बहती निरंतर
 भाव नैया में बैठ 
चप्पू चलाए शब्दों के 
कई बार हिचकोले खाए 
नाव डगमगाई 
 उर्मियों की बाहों में 
फिर भी तट तक पहुच पाया 
ना खोया  अंतर्प्रवाह में 
प्रतिबन्ध लगे 
निष्काषित हुआ 
सहायता भी ना मिल पाई 
भटका यहाँ वहाँ 
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर 
कई सवालिया चिन्ह लगे 
बात बढ़ी बहस छिड़ी
तब भी कहीं ना  रुक
पाया 
विचारों की सरिता में फिर से 
प्रवाह मान  ऐसा हुआ
 विचार व्यक्त करने
से 
स्वयं को ना रोक पाया |
आशा 


