31 जनवरी, 2018

कुनकुनी धूप








सर्दी का मौसम
 लगता बड़ा प्यारा
इसी प्रलोभन ने 
 मुझे मारा
कुनकुनी धूप 
और हलकी सी सर्दी
मन न हो
 घर का आँगन
 छोड़ने का
वहाँ बैठना
 और बुनाई करना
जो कभी शौक
 रहा करता था
अब हुआ दूर मुझसे
 मजबूरी में
बहुत खलने लगा है
 अब मुझको
पर किससे अपनी 
व्यथा साझा करूँ
कोई नहीं मिलता
 अपना सा मुझे
मन मार कर 
रह जाती हूँ
कोई नहीं जो
 मदद कर पाए |


आशा

28 जनवरी, 2018

क्षणिकाएं







तुमसे लगाया नेह अनूठा
अपना आपा खो  बैठी
आकांक्षा मन में रही 
कान्हां तुम मेरे हो 
मुझ में हो बस मेरे ही रहो |

आतुर नयन तेरे दर्शन को 
कर्ण मधुर ध्वनि सुनने को 
दीपक जलाया ध्यान लगाया 
कब मनोरथ पूर्ण हो |

आपसी तालमेल देखा आज हुए सम्मलेन में
छिपी हुई प्रतिभा दिखी छोटे बड़े हर वर्ग में
है यहाँ अपनापन भाईचारा ना कि कोई दिखावा
मन होने लगा अनंग इस पर्व में |

 आँखें नम हो रही हैं यह सब तो होता ही रहता है
बहुत कीमती हैं ये आंसू जिन्हें बहाना है मना
ये बचाएं शहीदों के लिए उन पर ही लुटाना
कतरा कतरा अश्रुओं का है अनमोल खजाना |

खिडकी से भीतर झांकती 
   धीरेसे कदम पीछे हटाती 
यह मेरा नहीं है ना ही कभी होगा 
यह कमरा है उसका  उसी का रहेगा
आशा