01 मार्च, 2014
28 फ़रवरी, 2014
चिराग जला
रात भर चिराग जला
एक पल भी न सोया
फिर भी तरसा
एक प्यार भरी निगाह को
जो सुकून दे जाती
उसकी खुशी में शामिल होती |
वह तो संतुष्टि पा जाता
किंचित स्नेह यदि पाता
दुगुने उत्साह से टिमटिमाता
उसी की याद में पूरी सहर
जाने कब कट जाती
कब सुबह होती जान न पाता |
पर ऐसा कब हुआ
मन चाहा कभी न मिला
सारी शब गुजरने लगी
शलभों के साथ में |
आशा
26 फ़रवरी, 2014
24 फ़रवरी, 2014
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