झूठ के पैर नहीं होते 
सुना था पर भोगा न था 
सत्य कभी छिपता नहीं 
पढ़ा था पर देखा न था |
बिना बात व्यर्थ की बहस 
बातों को तूल देती 
मन उद्द्वेलित कर देती 
पर सच कुछ और ही होता |
जब तक सत्य उजागर न होता 
 विचारों में वह उलझा रहता 
चाहे कहीं भी व्यस्त होता 
सत्य खोजता रहता  |
किसी  भी कहानी 
में 
बार बार आते परिवर्तन 
सार तक पहुँचने न देते 
तब विश्वास दगा देता |
ऐसे किस्से बिना सिर पैर के 
 कपोल
कल्पित लगते 
जब तक निर्णायक क्षण ना आए 
समय की बर्बादी लगते |
क्या आवश्यक नहीं 
जब तक पूर्ण खोज न हो 
मुद्दे चाहे जो हों 
सब के सामने न हों |
सारे सबूत जब जुट जाएं
सही सटीक हो बात
सही सटीक हो बात
तभी बात खोली जाए 
समय का सत्कार हो पाए |
बिना बात बयानबाजी 
शोभा नहीं देती 
असंतोष को जन्म देती 
अपना विश्वास खो देती |
आशा