कण कण में तेरा वास प्रभू
यही सुना है बचपन से
फिर भी इतना अंतर क्यूं
धनिक और ग़रीबों में
एक बात और देखी
कोई भी सुखी नहीं है
किसी न किसी उलझन में
फंसा है जूझ रहा है
क्या तुझको दया नहीं आती
क्यूं माँ बच्चों को भूखा सुलाती
अर्ध नग्न बच्चे बेचारे
ऋतुओं के जुल्म सहते जाते
जो मर्मान्तक पीड़ा झेल न पाते
दुनिया से कूच कर जाते
अनैतिक व्यापार जहां भी होता
अनैतिक व्यापार जहां भी होता
तू कैसे अनदेखी करता
कोई राह नहीं सुझाता
पत्थर दिल तेरा नहीं पसीजता
यह आखिर कब तक चलेगा
क्या दया भाव तुझमें उपजेगा
कोई तो राह निकाल प्रभू
थोड़ा सा कर उपकार प्रभू |